क्या सीडीएस ने साइबरस्पेस और एम्फीबियस ऑपरेशन्स के डीक्लासिफाइड संयुक्त सिद्धांत जारी किए?

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क्या सीडीएस ने साइबरस्पेस और एम्फीबियस ऑपरेशन्स के डीक्लासिफाइड संयुक्त सिद्धांत जारी किए?

सारांश

दिल्ली में सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने साइबरस्पेस और एम्फीबियस ऑपरेशन्स के लिए डीक्लासिफाइड संयुक्त सिद्धांत जारी किए। यह महत्वपूर्ण कदम भारत की सैन्य क्षमताओं को और मजबूत करेगा।

Key Takeaways

  • साइबरस्पेस और एम्फीबियस ऑपरेशन्स के लिए संयुक्त सिद्धांत जारी किए गए।
  • भारत की सैन्य क्षमताओं को सुदृढ़ करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • इन सिद्धांतों के माध्यम से संयुक्त युद्ध कार्यप्रणाली को और प्रभावी बनाया जाएगा।
  • भविष्य के युद्धों की तैयारियों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
  • यह नीति-निर्माताओं के लिए एक साझा दिशानिर्देश प्रदान करेगा।

नई दिल्ली, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने साइबरस्पेस ऑपरेशन्स और एम्फीबियस ऑपरेशन्स के लिए संयुक्त सिद्धांत (ज्वॉइंट डॉक्ट्रिन) का विमोचन किया है। यह इन अभियानों का डीक्लासिफाइड (गोपनीयता से मुक्त) संस्करण है। इस अवसर पर सेनाध्यक्ष जनरल उपेंद्र द्विवेदी, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी और वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ए. पी. सिंह भी उपस्थित रहे।

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का उद्देश्य भारत की संयुक्त युद्ध क्षमताओं को अधिक पारदर्शी, सुलभ और व्यापक रूप से साझा करने योग्य बनाना है। साइबरस्पेस ऑपरेशन्स के संयुक्त सिद्धांतों में साइबर क्षेत्र में भारत के राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण पर बल दिया गया है। इसमें आक्रामक और रक्षात्मक क्षमताओं का समन्वय, तीनों सेनाओं के बीच समकालिक संचालन, वास्तविक समय की खुफिया जानकारी का समावेश और साइबर क्षमताओं का संयुक्त विकास शामिल है।

एम्फीबियस ऑपरेशन्स से संबंधित संयुक्त सिद्धांत जल, थल और वायु सेना के बीच तालमेल के साथ तटीय अभियानों की योजना और क्रियान्वयन की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। इसमें इंटरऑपरेबिलिटी (आपसी तालमेल), त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता और संयुक्त बलों के प्रभावी उपयोग पर विशेष जोर दिया गया है। गुरुवार को दिल्ली में चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी की बैठक में इन दस्तावेजों को औपचारिक रूप से जारी किया गया। इस दौरान सैन्य मामलों के विभाग के सचिव भी मौजूद थे।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह भारत की भविष्य की युद्ध तैयारियों की दिशा में एक अहम कदम है। सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने बताया कि भविष्य के युद्ध क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए सैन्य अंतरिक्ष संचालन, स्पेशल फोर्सेस ऑपरेशन्स, एयरबोर्न/हैलीबोर्न मिशन, एकीकृत लॉजिस्टिक्स और मल्टी-डोमेन ऑपरेशन्स जैसे क्षेत्रों के लिए भी संयुक्त सिद्धांत विकसित किए जा रहे हैं। यह सिद्धांत नीति-निर्माताओं और संबंधित हितधारकों के लिए एक साझा शब्दावली और दिशानिर्देश प्रदान करेंगे, जिससे संयुक्त सैन्य अभियानों की योजना और क्रियान्वयन में समरसता लाई जा सके।

भारत ने एक नेशनल मिलिट्री स्पेस पॉलिसी भी बनाई है, जिससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि सेनाएं, इसरो और अन्य स्पेस एजेंसियां किस तरह राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान देंगी। इसके साथ ही थलसेना, वायुसेना और नौसेना मिलकर अपनी साझा स्पेस डॉक्ट्रिन भी जारी करने जा रही हैं। गौरतलब है कि रक्षा विशेषज्ञ कई बार यह कह चुके हैं कि भविष्य के युद्ध अंतरिक्ष से जुड़े होंगे। जैसे कि दुश्मन के सैटेलाइट कम्युनिकेशन को जाम करना या मिसाइल के जरिए सैटेलाइट को नष्ट करना, ये तकनीकें इस ओर इशारा करती हैं कि युद्ध का अगला आयाम अंतरिक्ष हो सकता है।

इन्हीं संभावनाओं के मद्देनज़र भारत ने एंटी-सैटेलाइट (ए-सैट) मिसाइल भी विकसित की है, जो इस दिशा में उसकी तैयारियों को दर्शाती है।

Point of View

यह कदम भारत की सैन्य क्षमताओं को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। साइबरस्पेस और एम्फीबियस ऑपरेशन्स के लिए संयुक्त सिद्धांत तैयार कर, भारत ने अपने संयुक्त सैन्य अभियानों की योजना को और अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास किया है।
NationPress
07/08/2025

Frequently Asked Questions

सीडीएस द्वारा जारी सिद्धांतों का महत्व क्या है?
यह सिद्धांत भारत की सैन्य क्षमताओं को और मजबूत करेगा और साइबरस्पेस में राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा को सुनिश्चित करेगा।
क्या ये सिद्धांत गोपनीय थे?
हाँ, ये सिद्धांत पहले गोपनीय थे और अब डीक्लासिफाइड किए गए हैं ताकि आम जनता के लिए उपलब्ध हो सकें।
इससे भारत की युद्ध तैयारी पर क्या असर पड़ेगा?
यह सिद्धांत भारत की भविष्य की युद्ध तैयारियों को बेहतर दिशा प्रदान करेगा और संयुक्त कार्यप्रणाली को मजबूत करेगा।