क्या अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाने के लिए हमें आगे बढ़कर लड़ना होगा?: चंपई सोरेन

सारांश
Key Takeaways
- परंपरा और संस्कृति की रक्षा करना आवश्यक है।
- सरकार की नीतियों का विरोध करना चाहिए।
- आदिवासी समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
- पेसा कानून को लागू करना महत्वपूर्ण है।
- सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए।
जमशेदपुर, १४ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन सरकार पर तीखा हमला किया। बिष्टुपुर के एक्सएलआरआई आडिटोरियम में रविवार को आदिवासी महादरबार का आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम आदिवासी सांवता सुसार अखाड़ा द्वारा आयोजित किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमें अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाने के लिए सक्रियता से लड़ाई लड़नी होगी।
पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने कहा कि हमने विश्व आदिवासी दिवस पर यह घोषणा की थी कि नगड़ी ग्राम में हल जोतेगे। यदि राज्य सरकार में हिम्मत है, तो वह चंपई सोरेन को रोककर दिखाए। उन्होंने बताया कि कोल्हन, संथाल एवं अन्य जिलों में इसे रोकने के लिए सुरक्षा बलों की तैनाती की गई थी। लेकिन नगड़ी में हमारी विजय हुई, वहां पर हल जोता गया।
उन्होंने उल्लेख किया कि बाबा तिलका मांझी से लेकर वीर सिद्धू कानू, चांद भैरव और भगवान बिरसा मुंडा ने जल, जंगल और जमीन के लिए संघर्ष किया है। हमारे पूर्वजों ने कभी पराधीनता स्वीकार नहीं की। हमें भी अपनी परंपरा और संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए आगे बढ़कर लड़ाई करनी होगी। जमीन दो प्रकार की होती है। एक पुतैनी होती है, जिसे हम खरीदते नहीं हैं और दूसरी पैतृक होती है, जिसे हम खरीदते हैं। आज आदिवासी समाज की जमीनों का अधिग्रहण किया जा रहा है।
सरना समिति की उपाध्यक्ष महिला वक्ता नisha उरांव ने कहा कि पेसा कानून को लागू करने के लिए पिछले १५ वर्षों से संघर्ष चल रहा था, लेकिन इस दौरान छठी अनुसूची के तहत चुनाव कराने की मांग उठाई जा रही थी। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि तुरंत पेसा कानून लागू किया जाए।
इस कार्यक्रम में झारखंड, बंगाल और उड़ीसा के लगभग दो हजार से अधिक माझी बाबा शामिल हुए। इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। कार्यक्रम में सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं संवैधानिक मुद्दों पर चर्चा की गई।