क्या चीनी और भारतीय लोग फासीवाद के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए?

सारांश
Key Takeaways
- डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस का योगदान ऐतिहासिक है।
- चीनी और भारतीय लोगों ने मिलकर फासीवाद के खिलाफ संघर्ष किया।
- उनकी निस्वार्थ भावना दोनों देशों के रिश्तों को मजबूती प्रदान करती है।
- इतिहास को याद रखना दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है।
- अंतर्राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा देना आवश्यक है।
बीजिंग, ३ सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। इस वर्ष जापानी आक्रमण के खिलाफ चीनी जन प्रतिरोध युद्ध और विश्व फासीवाद-विरोधी युद्ध की विजय की ८०वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। ३ सितंबर को चीन की राजधानी में एक भव्य सैन्य परेड भी आयोजित की जाएगी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, विभिन्न देशों में उत्पीड़ित राष्ट्रों और लोगों की स्वतंत्रता और मुक्ति, वास्तव में इस युद्ध की विजय का प्रत्यक्ष परिणाम साबित हुआ। लंबे समय से औपनिवेशिक शासन के अधीन रहने के कारण, भारतीय जनता ने चीनी लोगों के जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध का जोरदार समर्थन किया। महान अंतर्राष्ट्रीयवादी डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस और भारतीय चिकित्सा सहायता टीम का गौरवशाली कार्य, जापानी आक्रमण के खिलाफ चीनी लोगों के प्रतिरोध युद्ध में भारतीय लोगों के प्रबल समर्थन को दर्शाता है।
डॉ. द्वारकानाथ शांताराम कोटणीस का जन्म भारतीय नगर शोलापुर में हुआ और उन्होंने ब्रिटेन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। १९३६ में, उन्होंने भारत के ग्रांट मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा और शल्य चिकित्सा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। युवावस्था में, कोटनीस ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष में भाग लिया। १९३९ में, वे भारतीय चिकित्सा सहायता दल के साथ उत्तर पश्चिमी चीन के यानान गए, जहां चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओत्से तुंग ने उनका स्वागत किया। बाद में, उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की आठवीं रूट आर्मी के अस्पताल में काम करना शुरू किया। १९४० के युद्धों में उन्होंने ८०० से अधिक घायल सैनिकों का इलाज किया और १३ दिनों में ५८५ सर्जरी कीं। जनवरी १९४१ में, कोटनीस बेथ्यून इंटरनेशनल पीस हॉस्पिटल के निदेशक बने और अन्तर्राष्ट्रीयतावाद योद्धा नॉर्मन बेथ्यून की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। ९ दिसंबर, १९४२ को, ३२ वर्ष की आयु में, डॉ. कोटनीस का तांग काउंटी के गेगोंग गांव में बीमारी के कारण निधन हो गया।
उन कठिन वर्षों के दौरान, चीनी और भारतीय जनता ने फासीवादी आक्रमण के खिलाफ संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। डॉ. कोटनीस ने भारतीय चिकित्सा सहायता दल के साथ चीनी जनता के प्रतिरोध युद्ध में सहयोग देने के लिए उत्तरी चीन की यात्रा की और अंततः चीनी जनता की मुक्ति के लिए अपना बहुमूल्य जीवन बलिदान कर दिया। डॉ. कोटनीस की महान निस्वार्थ भावना को चीनी जनता गहराई से याद करती है, और इतिहास का यह अंश चीन-भारत संबंधों की एक सुंदर कहानी बन गया है। डॉ. कोटनीस की कहानी चीन और भारत दोनों देशों की स्कूली पाठ्यपुस्तकों में शामिल है, और उनकी अन्तर्राष्ट्रीयतावाद भावना चीन और भारत के बीच अपने मतभेदों को भुलाकर एकता में काम करने की यात्रा को आज भी प्रकाशित करती है। इतिहास को याद रखने से दोनों देशों के लोगों को नए युग में साथ मिलकर काम करने और चीनी लूंग और भारतीय हाथी के साथ नृत्य करने के सुंदर स्वप्न को साकार करने में मदद मिलेगी।
प्राचीन काल में गौरवशाली इतिहास साझा करने वाले चीनी और भारतीय लोग आधुनिक काल में साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी आक्रमण और उत्पीड़न के शिकार हुए थे। इसलिए, अंतर्राष्ट्रीय फासीवाद-विरोधी युद्ध के दौरान स्वाभाविक रूप से दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और समर्थन किया। डॉ. कोटनीस और उनकी चिकित्सा सहायता टीम इसलिए जापानी आक्रमण के खिलाफ चीनी लोगों के प्रतिरोध युद्ध में दृढ़ता से शामिल हुई क्योंकि उन्होंने यह माना कि चीनी और भारतीय लोगों का भाग्य एक समान है, और चीनी लोगों की जीत भारतीय लोगों के हितों के साथ भी संबंधित है। डॉ. कोटनीस के योगदान में न केवल अंतर्राष्ट्रीयता की महान भावना समाहित थी, बल्कि यह फासीवादी आक्रमण के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े चीनी और भारतीय लोगों के इतिहास को भी प्रतिबिंबित करता था।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)