क्या छिंगताओ की 'सुपर जीरो-कार्बन बिल्डिंग' सतत विकास की ओर चीन का अगला कदम है?

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क्या छिंगताओ की 'सुपर जीरो-कार्बन बिल्डिंग' सतत विकास की ओर चीन का अगला कदम है?

सारांश

छिंगताओ में उद्घाटन की गई 'सुपर जीरो-कार्बन बिल्डिंग' चीन की पर्यावरण-हितैषी नीतियों का प्रतीक है। यह भवन न केवल शून्य-कार्बन वास्तुकला का उदाहरण है, बल्कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के प्रति चीन की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। जानिए इस इमारत की विशेषताएँ और इसका वैश्विक जलवायु पर प्रभाव।

Key Takeaways

  • छिंगताओ की इमारत न केवल वास्तुकला का चमत्कार है।
  • यह हरित ऊर्जा के उपयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • यह इमारत शून्य-कार्बन विकास की दिशा में एक मील का पत्थर है।
  • भारत और चीन को तकनीकी सहयोग की आवश्यकता है।
  • जलवायु समस्याओं का समाधान नवीन तकनीक में है।

बीजिंग, 14 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। सतत विकास की दिशा में चीन ने एक और ऐतिहासिक कदम उठाया है। हाल ही में शांगदोंग प्रांत के छिंगताओ शहर में दुनिया की पहली “सुपर ज़ीरो-कार्बन बिल्डिंग” टेल्ड मुख्यालय बेस का उद्घाटन किया गया। यह इमारत शून्य-कार्बन वास्तुकला की दिशा में चीन की प्रगति का एक नया मील का पत्थर मानी जा रही है, जो न केवल वास्तुकला का चमत्कार है, बल्कि वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में चीन की गंभीर प्रतिबद्धता का ठोस उदाहरण भी है।

117 मंजिलों वाली इस इमारत का दैनिक ऊर्जा उपभोग लगभग 6,000 किलोवाट-घंटे है, जिसे मुख्य रूप से हरित स्रोतों से पूरा किया जाता है। भवन के तीन हिस्सों में लगे फोटोवोल्टिक ग्लास पर्दे इसे “बिजली पैदा करने वाला कोट” बना देते हैं। यह व्यवस्था न केवल स्थानीय ऊर्जा उत्पादन को सक्षम बनाती है, बल्कि डीसी से एसी में परिवर्तन से होने वाले ऊर्जा नुकसान को भी कम करती है। नतीजतन, इमारत अपनी 25 प्रतिशत ऊर्जा स्वयं पैदा करती है और हर साल लगभग 500 टन कार्बन उत्सर्जन घटाती है।

सौर ऊर्जा के साथ-साथ कैस्केड ऊर्जा भंडारण बैटरी और नए ऊर्जा वाहनों से विद्युत निर्वहन जैसी तकनीकें इसे 100 प्रतिशत हरित ऊर्जा प्रतिस्थापन के करीब ले जाती हैं। यह मॉडल आने वाले वर्षों में “स्मार्ट ज़ीरो-कार्बन सिटी” की परिकल्पना को साकार करने की दिशा दिखाता है।

यह उद्घाटन ऐसे समय हुआ है जब दुनिया “नेट-ज़ीरो 2050” के लक्ष्य को हासिल करने की ओर बढ़ रही है। चीन ने 2030 तक कार्बन पीक और 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य घोषित किया है। छिंगताओ की यह इमारत न केवल उस वादे की झलक है, बल्कि यह संकेत भी देती है कि चीन तकनीकी समाधान को जलवायु नीति से जोड़ने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

भारत और चीन दोनों ही बड़ी ऊर्जा खपत करने वाले देश हैं और दोनों पर वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी है। भारत तेजी से सौर ऊर्जा और ग्रीन बिल्डिंग टेक्नोलॉजी में निवेश कर रहा है। चीन का यह मॉडल भारतीय शहरों के लिए प्रेरणा हो सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ प्रदूषण और ऊर्जा मांग दोनों ही चुनौती बने हुए हैं। अगर दोनों देश तकनीकी सहयोग, ज्ञान-साझेदारी और हरित निवेश के क्षेत्र में साथ आते हैं, तो यह पूरे एशिया को शून्य-कार्बन विकास के मार्ग पर अग्रसर कर सकता है।

छिंगताओ की “सुपर ज़ीरो-कार्बन बिल्डिंग” केवल एक इमारत नहीं है, बल्कि भविष्य की उस दिशा का प्रतीक है जहाँ विकास और पर्यावरण साथ-साथ चलते हैं। यह एक संदेश भी है कि जलवायु संकट का समाधान केवल नीतियों में नहीं, बल्कि उन ठोस तकनीकी प्रयोगों में छिपा है जो धरती को स्वच्छ और सतत बना सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह परियोजना चीन की पर्यावरण-हितैषी नीतियों और हरित विकास के संकल्प को प्रदर्शित करती है। यह न केवल वास्तुकला में नवाचार का उदाहरण है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सतत और स्वच्छ भविष्य की दिशा भी दिखाती है।

(दिव्या पाण्डेय - चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

Point of View

विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ प्रदूषण और ऊर्जा की मांग पर काबू पाना आवश्यक है। दोनों देशों को मिलकर तकनीकी सहयोग और हरित निवेश के माध्यम से जलवायु संकट के समाधान के लिए आगे बढ़ना चाहिए।
NationPress
14/09/2025

Frequently Asked Questions

छिंगताओ की सुपर जीरो-कार्बन बिल्डिंग की खासियत क्या है?
इस इमारत में सौर ऊर्जा, फोटोवोल्टिक ग्लास पर्दे, और ऊर्जा भंडारण बैटरी जैसी तकनीकों का उपयोग किया गया है, जो इसे 100 प्रतिशत हरित ऊर्जा प्रतिस्थापन के करीब ले जाती हैं।
क्या यह इमारत वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगी?
हाँ, यह इमारत हर साल लगभग 500 टन कार्बन उत्सर्जन घटाने में सक्षम है, जिससे वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।