क्या चित्तौड़गढ़ में महारैली के दौरान सांसद राजकुमार रोत ने भील प्रदेश की मांग उठाई?

सारांश
Key Takeaways
- विश्व आदिवासी दिवस पर भव्य महारैली का आयोजन हुआ।
- राजकुमार रोत ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए।
- भील प्रदेश की पुरानी मांग को उठाया गया।
- आदिवासी संस्कृति का अद्भुत प्रदर्शन हुआ।
- राजस्थान सरकार की उदासीनता की आलोचना की गई।
चित्तौड़गढ़, 10 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर रविवार को चित्तौड़गढ़ में इंदिरा गांधी स्टेडियम से एक भव्य महारैली का आयोजन किया गया और ईनानी सिटी सेंटर में एक जनसभा भी आयोजित की गई।
इस कार्यक्रम में बांसवाड़ा-डूंगरपुर के सांसद राजकुमार रोत, धरियावद के विधायक थावरचंद डामोर, गोपाल भील आकोड़िया समेत बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि और भील समाज के लोग उपस्थित रहे।
महारैली में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिली, जिसमें पारंपरिक वेशभूषा और नृत्य ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। सांसद राजकुमार रोत ने जनसभा को संबोधित करते हुए केंद्र और राजस्थान सरकार पर तीखे आरोप लगाए।
उन्होंने केंद्र सरकार पर ऑपरेशन सिंदूर और पाकिस्तान मामले में अमेरिका के दबाव में आने का गंभीर आरोप लगाया। रोत ने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पूरा विपक्ष सरकार के साथ खड़ा था, लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीजफायर करा दिया। इस मुद्दे पर सदन में देश के तीन प्रमुख नेताओं का बयान आया, लेकिन तीनों के बयान भिन्न थे। अमेरिका के दबाव के चलते हमें झुकना पड़ा, जो कि शर्मनाक है। विमानों के नष्ट होने पर सरकार को उचित उत्तर देना चाहिए।
उन्होंने भील प्रदेश की पुरानी मांग को फिर से उठाया और कहा कि यदि यह मांग पूरी हो जाती तो आदिवासी समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति आज कहीं बेहतर होती।
राजकुमार रोत ने कहा कि देश में लगभग 14-15 करोड़ आदिवासी जनसंख्या है, जो प्रकृति संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसके बावजूद, प्रधानमंत्री और राजस्थान के मुख्यमंत्री ने विश्व आदिवासी दिवस पर शुभकामनाएं तक नहीं दीं।
उन्होंने राजस्थान सरकार पर भी आरोप लगाया कि बजट जारी होने के बावजूद विश्व आदिवासी दिवस के लिए कोई आधिकारिक आयोजन नहीं किया गया। यह आदिवासी समाज के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाता है।
उन्होंने चित्तौड़गढ़ के गौरवमयी इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि यह क्षेत्र वीरता और बलिदान के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां का भील समाज आज भी विकास के मामले में पीछे है। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में आदिवासियों के लिए विशेष योजनाओं की आवश्यकता है, लेकिन सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही।