क्या सीजेआई गवई पर हमले के खिलाफ देशभर में वकीलों का प्रदर्शन जारी है?

सारांश
Key Takeaways
- सीजेआई बीआर गवई पर हमला एक गंभीर मुद्दा है।
- वकीलों ने संविधान और न्यायपालिका की रक्षा की मांग की है।
- देशभर में प्रदर्शन जारी है।
- न्याय व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिशें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।
- यह एक चेतावनी है कि न्यायपालिका को डराने की कोशिशें अस्वीकार्य हैं।
नई दिल्ली, 7 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई बीआर गवई के खिलाफ दुर्व्यवहार की कोशिश पर मंगलवार को दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में वकीलों ने विरोध प्रदर्शन किया। वकीलों ने कहा कि यह हमला केवल एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि भारत की न्याय व्यवस्था की नींव को हिलाने की एक साजिश है। यह संविधान के खिलाफ एक सीधा हमला है।
प्रदर्शन कर रहे वकीलों में से एक ने राष्ट्र प्रेस से कहा, "यह देश केवल भारत के संविधान से चलेगा, न कि धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वालों से।"
उन्होंने आगे कहा, "हर रोज दलितों की हत्याएं हो रही हैं, अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं और 'हिंदू खतरे में है' जैसे नारों से देश में नफरत फैलाई जा रही है।"
एक अन्य अधिवक्ता ने कहा, "जो कुछ भी कोर्ट में हुआ, वह केवल चीफ जस्टिस के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह भारतीय न्यायपालिका पर हमला है। हमारी मांग है कि इस पर तुरंत सख्त कार्रवाई हो ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।"
वकीलों ने प्रदर्शन के दौरान नारे लगाते हुए कहा, "कानून के राज पर हमला नहीं सहेंगे, सीजेआई पर हमला बंद करो, न्याय की गरिमा को बचाओ, संविधान की रक्षा करो।"
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के सामने भी वकीलों ने विरोध प्रदर्शन किया। करीब 50 से ज्यादा वकीलों ने हाथों में तख्तियां और नारे लेकर प्रदर्शन किया और जस्टिस गवई पर हुए हमले की कड़ी निंदा की।
वकीलों ने बताया कि यह प्रदर्शन केवल मदुरै में सीमित नहीं रहेगा। एक वकील ने कहा, "यह विरोध प्रदर्शन देशभर में चलेगा। आज जिला न्यायालयों में छुट्टी थी, लेकिन आने वाले समय में इसे और बड़ा बनाया जाएगा। यह एक चेतावनी है कि न्यायपालिका को डराने की कोशिशें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।"
महाराष्ट्र के कोल्हापुर के छत्रपति शिवाजी महाराज चौक पर मुख्य न्यायाधीश पर हमले के खिलाफ इंडिया फ्रंट ने विरोध प्रदर्शन किया।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर हमले के आरोपी सुप्रीम कोर्ट के वकील राकेश किशोर ने कहा, "अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा के नेतृत्व वाली बार काउंसिल ने सोमवार की रात मुझे निलंबित करने का एक पत्र भेजा, जिसे मैं आपको दिखा सकता हूं। यह पत्र उनका आदेश और एक निरंकुश फरमान है। अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 35 के अनुसार, जब भी किसी वकील के खिलाफ कोई कार्रवाई की जाती है, तो पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया जाना चाहिए, वकील का पक्ष सुना जाना चाहिए और उसके बाद ही उन्हें बर्खास्त, रोल से हटाया या निलंबित किया जा सकता है।