क्या सीएम योगी ने राम मंदिर के जिक्र में भारत के सनातन वैभव को उजागर किया?
सारांश
Key Takeaways
- भारत की धार्मिक परंपरा मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
- अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
- जैन तीर्थंकरों का योगदान समाज को नई दिशा देने में महत्वपूर्ण है।
- राजनीतिक नेताओं का ध्यान सामाजिक समरसता पर होना चाहिए।
- अध्यात्म और भौतिक विकास का समन्वय आवश्यक है।
गाजियाबाद, 27 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भारत की परंपरा संतों, ऋषि-मुनियों और महापुरुषों के त्याग-बलिदान की एक अद्भुत महागाथा है। यह महागाथा सदियों से विश्व मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। आज भी भारत में पवित्र उपासना विधियां श्रद्धाभाव के साथ कार्य करती हैं।
उन्होंने बताया कि तीन दिन पहले अयोध्या में प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण के महायज्ञ के पूर्णाहुति कार्यक्रम में पीएम मोदी के करकमलों से भव्य भगवा ध्वज का आरोहण हुआ। पूरी दुनिया ने इस सनातन वैभव को देखा और अनुभव किया।
सीएम योगी ने तरुण सागरम् तीर्थ, मुरादनगर में पंचकल्याणक महामहोत्सव के अंतर्गत 100 दिन में निर्मित गुफा मंदिर का उद्घाटन किया। उन्होंने भगवान पार्श्वनाथ और संत तरुण सागर जी का स्मरण किया। इसके साथ ही मेरी बिटिया और अंतर्मना दिव्य मंगल पाठ पुस्तक का विमोचन भी किया।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश का सौभाग्य है कि अयोध्या में जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव और चार अन्य जैन तीर्थंकरों का जन्म हुआ। दुनिया ने काशी में इन चार जैन तीर्थंकरों का अवतरण देखा है। श्रावस्ती में जैन तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का जन्म हुआ और भगवान महावीर का महापरिनिर्वाण कुशीनगर के पावागढ़ में हुआ। हमारी सरकार ने फाजिलनगर का नामकरण पावा नगरी के रूप में किया है।
सीएम योगी ने कहा कि 24 जैन तीर्थंकरों ने समाज को नई दिशा और विश्व मानवता को करुणा, मैत्री, अहिंसा और ‘जियो-जीने दो’ की प्रेरणा दी। उन्होंने केवल मानवता के लिए ही नहीं, बल्कि सभी जीवों के लिए नई प्रेरणा दी है। मानव सभ्यता को विकास के नए उच्चाइयों तक पहुंचना है तो उन्हें भारत के अध्यात्म की शरण में आना होगा।
सीएम ने कहा कि ऋषि-मुनि परंपरा का संदेश विश्व मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। पीएम मोदी ने पिछले वर्ष अप्रैल में विश्व नवकार महामंत्र दिवस पर वन वर्ल्ड-वन चैन कार्यक्रम का उद्घाटन किया था।
उन्होंने आचार्य प्रसन्न सागर जी महाराज और उपाध्याय मुनि पीयूष सागर जी महाराज की कठोर साधना का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसमें 557 दिन की तपस्या और 496 दिन का निर्जल उपवास शामिल है। इन साधनाओं ने दिखाया है कि यदि संकल्प किया जाए तो बाहरी दुनिया की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है।