क्या संस्कृति में राष्ट्र की आत्मा होती है? : सीएम योगी
सारांश
Key Takeaways
- संस्कृति राष्ट्र की आत्मा होती है।
- राष्ट्र की पहचान संस्कृति से जुड़ी है।
- भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय ने भारतीय कला को प्रोत्साहित किया है।
- पंडित विष्णु नारायण भातखंडे का योगदान महत्वपूर्ण था।
- महाकुम्भ 2025 में युवाओं की बड़ी भागीदारी होगी।
लखनऊ, 18 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जोर देकर कहा कि राष्ट्र की आत्मा उसकी संस्कृति में निहित होती है। उन्होंने कहा, "जैसे किसी व्यक्ति की आत्मा जब उसके शरीर से अलग होती है, तो शरीर निर्जीव हो जाता है, उसी प्रकार यदि किसी राष्ट्र की संस्कृति को उससे अलग कर दिया जाए, तो वह भी निर्जीव हो जाता है। वह एक खंडहर में बदल जाता है और अपनी पहचान को खो देता है।"
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार को भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह के उद्घाटन के अवसर पर यह बातें कहीं। उन्होंने इसे हमारे लिए एक महत्वपूर्ण अवसर बताया। उनके अनुसार, भारत की कला, स्वर और लय ने विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए निरंतरता प्रदान की, जिसके कारण हमारी सनातन संस्कृति विश्व में खुद को स्थापित करने में सफल रही। उन्होंने कहा कि कलाकार की कला एक ईश्वरीय गुण है, और हमें इसे अवमानना नहीं करनी चाहिए। हमें हर विधा से जुड़े कलाकारों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के शताब्दी महोत्सव के शुभारंभ पर बधाई देते हुए कहा कि यह संस्थान पीढ़ी-दर-पीढ़ी भारत की सांस्कृतिक चेतना, स्वर, लय और संस्कार को एक नई पहचान दे रहा है। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय ने भारतीय संगीत, नृत्य, नाट्य और ललित कलाओं को संरक्षित किया है और इन्हें आधुनिक शैक्षणिक व्यवस्था से जोड़कर प्रतिष्ठित किया है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि एक संस्कृति कर्मी भी राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दिशा में भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय से जुड़े सभी महानुभावों के योगदान के लिए उन्होंने कृतज्ञता व्यक्त की। इस अवसर पर उन्होंने पंडित विष्णु नारायण भातखंडे को श्रद्धांजलि भी अर्पित की।
मुख्यमंत्री ने बताया कि वर्ष 1940 में गुरुदेव रबिंद्रनाथ टैगोर ने इस संस्थान को विश्वविद्यालय के रूप में संबोधित किया था। यह प्रसन्नता का विषय है कि पंडित विष्णु नारायण भातखंडे की भावनाओं के अनुरूप इसे विश्वविद्यालय का स्वरूप दिया जा सका। 1947 में देश स्वतंत्र हुआ और 1950 में संविधान लागू हुआ। तब से लेकर 2017 तक अनेक सरकारें आईं और गईं, लेकिन तत्कालीन राज्यपाल राम नाइक ने भातखंडे संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने के विषय में उनसे संवाद किया।
उन्होंने बताया कि प्रस्ताव आने में देर हुई, विभाग से निरंतर संवाद हुआ और अंततः वर्ष 2022 में सरकार ने इसे विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता दी। यह उत्तर प्रदेश का पहला संस्कृति विश्वविद्यालय है। उन्होंने कुलपति प्रो. माण्डवी सिंह की सराहना करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय का कुलगीत और लोगो ‘नादाधीनं जगत्’ थीम पर आधारित है, जिसका अर्थ है - पूरा जगत नाद के अधीन है। यह जीवन की सच्चाई को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इस सृष्टि का पहला स्वर ओंकार है। उन्होंने नाद योग का उल्लेख करते हुए कहा कि विज्ञान, अध्यात्म और संस्कृति तीनों ही इसकी पुष्टि करते हैं। भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय का विजन भी यही है कि नाद के अधीन पूरा जगत है। उन्होंने कहा कि संगीत की विभिन्न विधाओं के माध्यम से इसी नाद की पहचान करना साधना का विषय है। विश्वविद्यालय से जुड़े पूर्व कलाकारों को सम्मानित करते हुए उन्होंने कहा कि ये कलाकार न केवल भातखंडे की परंपरा, बल्कि उत्तर प्रदेश के सांस्कृतिक मूल्यों को भी वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं। कॉफी टेबल बुक के विमोचन पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आने वाले समय में यह पुस्तक प्रेरणा का कार्य करेगी। देश की आजादी के शताब्दी महोत्सव के साथ जब विश्वविद्यालय जुड़ रहा होगा, तब यह कॉफी टेबल बुक अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध होगी।
मुख्यमंत्री योगी ने पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के योगदान को स्मरण करते हुए कहा कि 1926 में जब देश औपनिवेशिक शासन के अधीन था, तब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित थी और संगीत तथा कला के लिए मंच उपलब्ध नहीं थे। उस समय पंडित भातखंडे ने भारतीय संगीत को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। शास्त्रीय अनुशासन, सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम, राग-ताल का वर्गीकरण, क्रमिक पद्धति और गुरु-शिष्य परंपरा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ना उनका ऐतिहासिक योगदान था। यह कार्य केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति को आत्मसम्मान, आत्मगौरव और स्थायित्व देने का प्रयास था।
सीएम योगी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में देश में अपनी विरासत को पुनः खोजने का कार्य आरंभ हुआ है। इससे भारत को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिल रही है। उन्होंने 2019 के कुम्भ और 2025 में आयोजित महाकुम्भ का उल्लेख करते हुए कहा कि कुछ लोगों का मानना था कि आज का युवा अपनी संस्कृति से विमुख हो रहा है। औपनिवेशिक काल में इस प्रकार की धारणा को जानबूझकर बढ़ाया गया। लेकिन महाकुम्भ 2025 में 66.30 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने इस मिथक को तोड़ दिया। इनमें सर्वाधिक संख्या युवाओं की थी। न केवल भारत, बल्कि विश्व के हर कोने से लोग इस आयोजन से जुड़े। मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि सही प्लेटफॉर्म मिलने पर संस्कृति स्वतः आगे बढ़ती है।