क्या चुनाव हारते ही कांग्रेस के लिए ईवीएम विलेन बन जाती है? : प्रवीण खंडेलवाल
सारांश
Key Takeaways
- ईवीएम पर कांग्रेस का दोहरा चरित्र उजागर हुआ है।
- भाजपा ने चुनाव सुधारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है।
- राहुल गांधी का भाषण राजनीतिक स्वार्थ से भरा था।
- ममता बनर्जी की नीतियाँ बंगाल के लोगों के लिए चिंताजनक हैं।
- बंगाल के लोग कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
नई दिल्ली, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भाजपा के सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने कांग्रेस पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि जब कांग्रेस चुनाव में जीतती है, तब उनके लिए ईवीएम सही होता है, लेकिन हारने पर ईवीएम उनके लिए एक विलेन बन जाता है।
प्रवीण खंडेलवाल का यह वक्तव्य उस समय सामने आया, जब संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने मतदाता चोरी जैसे मुद्दों पर चर्चा की।
उन्होंने कहा कि यदि ईवीएम में किसी प्रकार की हेराफेरी संभव होती, तो देश में इस पर विश्वास समाप्त हो जाता। कांग्रेस ने ईवीएम को चुनाव सुधारों के एक बड़े कदम के रूप में प्रस्तुत किया था और इसे बढ़ावा दिया था। आज, जब कांग्रेस चुनाव हार रही है, तब वह ईवीएम पर सवाल उठाने लगी है। हालांकि, जिन राज्यों में कांग्रेस जीतती है, जैसे कि तेलंगाना और कर्नाटक, या जब जम्मू-कश्मीर में कोई अन्य पार्टी सत्ता में आती है, तब वह ईवीएम पर सवाल नहीं उठाती। कांग्रेस का यह दोहरा चरित्र उनकी वास्तविकता को उजागर करता है।
भाजपा सांसद ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें बंगाल की वर्तमान स्थिति पर ध्यान देने की आवश्यकता है। बंगाल के लोग कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, लेकिन ममता बनर्जी का ध्यान इस पर नहीं है। पश्चिम बंगाल सरकार का संचालन करते समय केवल एक खास वर्ग पर ध्यान देकर वे अपनी स्थिति को खतरे में डाल रही हैं।
उन्होंने राहुल गांधी के भाषण पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्ष के नेता ने चुनावी सुधारों पर चर्चा में योगदान देने के बजाय अपने राजनीतिक हित साधने की कोशिश की। जैसा कि उम्मीद थी, विपक्ष के नेता कोई ठोस सुझाव देने में असफल रहे, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई चुनावी सुधार प्रक्रिया को सुलभ बना सके और हमारे लोकतंत्र को मजबूत कर सके। वे केवल झूठे आरोप लगाने में माहिर हैं। हमें उम्मीद थी कि वे अच्छे सुझाव देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। निराशा ही हाथ लगी है। हमारी सरकार चुनाव सुधार को लेकर प्रतिबद्ध है।