क्या छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में 15 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया?

सारांश
Key Takeaways
- दंतेवाड़ा में 15 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया।
- 5 माओवादियों पर 17 लाख रुपए का इनाम था।
- 'लोन वर्राटू' अभियान का उद्देश्य माओवादियों को समाज में वापस लाना है।
- सरकार 1020 नक्सलियों को पुनर्वास सहायता दे चुकी है।
- आत्मसमर्पण में दो महिला माओवादी भी शामिल थीं।
दंतेवाड़ा, २४ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। छत्तीसगढ़ में माओवादियों को समाज की मुख्यधारा में लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। गुरुवार को दंतेवाड़ा जिले में १५ नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। इनमें से पाँच माओवादियों पर कुल १७ लाख रुपए का इनाम घोषित था। यह आत्मसमर्पण बस्तर क्षेत्र में चल रहे 'लोन वर्राटू' और 'पुना मार्गेम' अभियानों के तहत एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी उदित पुष्कर ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वालों में बुधराम उर्फ लालू कुहराम पर ८ लाख रुपए का इनाम था। कमली उर्फ मोटी पोटावी पर ५ लाख, और पोज्जा मड़कम पर २ लाख रुपए का इनाम घोषित किया गया था। इसके अलावा, दो महिला माओवादी आयते उर्फ संगीता सोडी और माडवी पांडे ने भी आत्मसमर्पण किया, जिन पर एक-एक लाख रुपए का इनाम था।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वाले बुधराम और कमली दोनों नक्सली गतिविधियों में पिछले दो दशकों से सक्रिय थे और कई हिंसक घटनाओं में शामिल रहे हैं।
माओवादी ने पुलिस अधीक्षक गौरव राय, डीआईजी कमलोचन कश्यप और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के अधिकारी राकेश चौधरी की उपस्थिति में आत्मसमर्पण किया। अधिकारियों ने पुनर्वास के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया।
राज्य सरकार की संशोधित नीति के तहत आत्मसमर्पित नक्सलियों को कौशल विकास प्रशिक्षण, स्वरोजगार सहायता, मानसिक परामर्श और सुरक्षा की गारंटी दी जाती है। इन पहलों के तहत अब तक १,०२० नक्सली हथियार छोड़ चुके हैं, जिनमें २५४ इनामी नक्सली शामिल हैं। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नारायणपुर जिलों से हैं, जिनमें ८२४ पुरुष और १९६ महिलाएं शामिल हैं।
'लोन वर्राटू' अभियान ५ साल पहले २०२० में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य माओवादियों को हिंसा छोड़ने और नागरिक समाज में फिर से शामिल होने के लिए प्रेरित करना है। स्थानीय गोंडी भाषा के शब्द 'लोन वर्राटू' का अर्थ 'घर वापस आओ' होता है। 'पुना मार्गेम' अभियान भी इसी पहल का हिस्सा है।
अधिकारियों ने इस सफलता का श्रेय निरंतर संपर्क, सामुदायिक जुड़ाव और नक्सलियों के बीच सशस्त्र संघर्ष की निरर्थकता की बढ़ती समझ को दिया। कई माओवादियों ने आंतरिक शोषण, जंगलों की कठिन परिस्थितियों और आदर्शवादी मोहभंग को आत्मसमर्पण का कारण बताया। प्रशासन ने शेष नक्सलियों से भी मुख्यधारा में लौटने की अपील की है और कहा कि शांति, गरिमा और विकास उनका इंतजार कर रहे हैं।