क्या बिहार चुनाव में दरौंदा की सियासत की नई लकीरें बन रही हैं?

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क्या बिहार चुनाव में दरौंदा की सियासत की नई लकीरें बन रही हैं?

सारांश

बिहार के दरौंदा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में परिवारवाद और जनादेश की नई लकीरों का उदय हो रहा है। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था इसे चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है। जानें कैसे दरौंदा का मतदाता आधार और विभिन्न समुदाय चुनावी परिणामों को प्रभावित कर रहे हैं।

Key Takeaways

  • दरौंदा विधानसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति उपजाऊ है।
  • कृषि इस क्षेत्र की मुख्य आर्थिक गतिविधि है।
  • यहाँ युवा मतदाताओं की संख्या महत्वपूर्ण है।
  • राजनीतिक परिवारों का प्रभाव चुनावों में प्रमुख है।
  • विभिन्न समुदायों की उपस्थिति चुनावी परिणामों को प्रभावित करती है।

पटना, 14 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के सिवान जिले का दरौंदा विधानसभा क्षेत्र राज्य की राजनीति में तेजी से उभरता हुआ एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह सीट सिवान लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसमें दरौंदा, सिसवन प्रखंड और हसनपुरा प्रखंड के 10 ग्राम पंचायत शामिल हैं। इस क्षेत्र का गठन 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था।

दरौंदा की भौगोलिक संरचना पूरी तरह से समतल और उपजाऊ है। यहाँ के किसान गंडक नदी की सिंचाई सुविधा का लाभ उठाते हैं। कृषि इस क्षेत्र की प्रमुख आर्थिक गतिविधि बनी हुई है, जहाँ धान, गेहूं और गन्ना प्रमुख फसलें हैं। इसके अतिरिक्त, चावल मिलों और ईंट भट्ठों जैसे स्थानीय उद्योग भी रोजगार के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

दरौंदा की कनेक्टिविटी को अच्छा माना जाता है। यहां से सिवान जिला मुख्यालय लगभग 20 किलोमीटर, छपरा 50 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में और गोपालगंज करीब 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। राज्य की राजधानी पटना यहां से लगभग 140 किलोमीटर दूर है। इस क्षेत्र के युवा मतदाता विकास और अवसरों की राजनीति की ओर अधिक झुकाव रखते हैं। रोजगार की समस्या के चलते लोग दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।

दरौंदा विधानसभा क्षेत्र में अब तक पांच विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें दो उपचुनाव (2011 और 2019) भी शामिल हैं। 2010 के चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) की जगमतो देवी ने जीत हासिल की थी। उनके निधन के बाद, 2011 में उपचुनाव हुआ, जिसमें उनकी बहू कविता सिंह ने जीत दर्ज की। उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में भी अपनी सीट बरकरार रखी। इसके पश्चात, 2019 में कविता सिंह ने सिवान संसदीय सीट से जीत दर्ज की और फिर दरौंदा में दूसरा उपचुनाव हुआ। इस बार जेडीयू ने कविता सिंह के पति अजय कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया, लेकिन उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार करणजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह ने हराया। हालांकि, करणजीत सिंह बाद में भाजपा में शामिल हो गए और 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाकपा (माले) के अमरनाथ यादव को पराजित किया।

दरौंदा का मतदाता आधार पूरी तरह ग्रामीण है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहाँ कोई शहरी मतदाता नहीं था। 2024 में चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, कुल मतदाताओं की संख्या 3,29,715 है। मतदाताओं में 1,71,359 पुरुष, 1,58,347 महिलाएं और 9 थर्ड जेंडर शामिल हैं।

यहां राजपूत, यादव, पासवान, मुस्लिम और ब्राह्मण समुदायों की उल्लेखनीय उपस्थिति है, जो चुनावी परिणामों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं।

Point of View

जो कि बिहार की राजनीति में एक उभरता हुआ केंद्र है, में परिवारवाद और जनादेश के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। यहाँ की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और युवा मतदाताओं की आकांक्षाएं इसे चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनाव में ये तत्व कैसे कार्य करेंगे।
NationPress
14/10/2025

Frequently Asked Questions

दरौंदा विधानसभा क्षेत्र में कौन-कौन से समुदाय महत्वपूर्ण हैं?
दरौंदा में राजपूत, यादव, पासवान, मुस्लिम और ब्राह्मण समुदायों की महत्वपूर्ण उपस्थिति है, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं।
दरौंदा विधानसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति क्या है?
दरौंदा पूरी तरह से समतल और उपजाऊ क्षेत्र है, जहाँ गंडक नदी की सिंचाई सुविधा उपलब्ध है।
दौरंदा में पिछले चुनावों में क्या मुख्य घटनाएँ हुईं?
2010, 2011 और 2019 में हुए चुनावों में विभिन्न प्रमुख घटनाएँ हुईं, जिसमें परिवारवाद की भूमिका देखी गई।