क्या रेप मामले में समीर मोदी की जमानत अर्जी पर दिल्ली पुलिस ने विरोध जताया?

सारांश
Key Takeaways
- समीर मोदी का मामला गंभीर आरोपों से भरा है।
- दिल्ली पुलिस ने जमानत पर कड़ा विरोध किया है।
- जमानत मिलने पर आरोपी की फरारी की आशंका है।
- महिला ने 2019 से लगातार शोषण का आरोप लगाया है।
- कोर्ट ने जांच की गंभीरता को ध्यान में रखा है।
नई दिल्ली, 20 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भगोड़े व्यापारी ललित मोदी के भाई समीर मोदी के खिलाफ दर्ज रेप और आपराधिक धमकी के मामले में दिल्ली पुलिस ने साकेत कोर्ट में उनकी जमानत अर्जी का कड़ा विरोध किया है। शनिवार को पुलिस ने कोर्ट में अपना जवाब पेश करते हुए कहा कि अगर आरोपी को जमानत दी गई तो जांच पर असर पड़ सकता है।
समीर मोदी को 18 सितंबर को इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय (आईजीआई) एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) जारी कर उन्हें विदेश भागने से रोका। कोर्ट ने 19 सितंबर को दो दिन की पुलिस रिमांड दी थी और जमानत पर सुनवाई सोमवार को निर्धारित की गई है।
दिल्ली पुलिस ने अपने जवाब में कहा है कि शिकायतकर्ता महिला ने गंभीर आरोप लगाए हैं। महिला के अनुसार, समीर मोदी ने 2019 से लगातार उसका यौन शोषण किया, दुष्कर्म किया और ब्लैकमेल किया। पीड़िता का कहना है कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में करियर में मदद का लालच दिया। यह शोषण 2024 तक चलता रहा। एफआईआर 10 सितंबर को न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी थाने में दर्ज की गई, जिसमें आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज है।
पुलिस ने कोर्ट को बताया कि अगर आरोपी को जमानत मिलती है, तो वह फरार हो सकता है, क्योंकि वह पहले ही विदेश जाने का प्रयास कर चुका था। लंदन की यात्रा के दौरान उसे एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा, जमानत मिलने पर आरोपी गवाहों को धमका सकता है और जांच में रुकावट डाल सकता है। पुलिस ने तर्क दिया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए समीर मोदी को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
जांच अधिकारी ने कहा कि आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं, जिसमें व्हाट्सएप चैट और अन्य डिजिटल साक्ष्य शामिल हैं। पुलिस ने तीन दिन की रिमांड मांगी थी, लेकिन कोर्ट ने दो दिन की अनुमति दी। पीड़िता के वकील की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बंद कमरे में प्रक्रिया अपनाई। मीडिया को बाहर कर दिया गया।
समीर मोदी के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता ने एलओसी को जल्दबाजी का बताया। उन्होंने कहा कि एफआईआर के मात्र पांच दिनों में एलओसी जारी करना संदिग्ध है। वकील ने दावा किया कि आरोप झूठे हैं और यह एक वसूली की साजिश है।