क्या देवरिया का यह मंदिर है 'अश्वत्थामा' की तपोभूमि?

सारांश
Key Takeaways
- दीर्घेश्वर नाथ मंदिर महाभारत से जुड़ा धार्मिक स्थल है।
- यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।
- स्थानीय लोगों का मानना है कि अश्वत्थामा यहाँ पूजा करते हैं।
- मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है।
- पार्वती सरोवर के स्नान से त्वचा रोगों का उपचार होता है।
देवरिया, 18 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से लगभग 35 किलोमीटर दूर मझौली राज में स्थित दीर्घेश्वर नाथ मंदिर महाभारत काल से संबंधित एक अनोखी मान्यता का केंद्र बन चुका है। श्रद्धालु जटाशंकर दुबे ने राष्ट्र प्रेस से विशेष बातचीत में कहा, "यह मंदिर अश्वत्थामा की तपोभूमि के रूप में विख्यात है। ऐसा माना जाता है कि वे आज भी यहाँ पूजा करने आते हैं। सावन के महीने में हर सोमवार को एक से डेढ़ लाख लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।"
एक अन्य श्रद्धालु ने बताया कि यह प्राचीन मंदिर है, जहाँ भगवान शिव ने अश्वत्थामा को दर्शन दिए थे। यहाँ मौजूद पार्वती सरोवर में स्नान करने से त्वचा रोगों का उपचार होता है, ऐसी मान्यता है।
वहीं, मंदिर के महंत जगन्नाथ दास जी महाराज ने राष्ट्र प्रेस को बताया कि मंदिर परिसर में स्थित पार्वती सरोवर में सफेद कमल के फूल खिलते हैं, जिन्हें अश्वत्थामा सहस्त्रार्चन पूजा के लिए उपयोग करते थे। उन्होंने कहा, "यह मंदिर प्राचीन और पवित्र है। यहाँ भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन में लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं।"
महंत के अनुसार, यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ऐतिहासिक महत्व का भी प्रतीक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने करीब चार दशक पहले यहाँ खुदाई की थी, जिसमें द्वापर युग की मूर्तियां, मृदभांड और प्राचीन सिक्के मिले थे। इन खोजों ने मंदिर की प्राचीनता को सिद्ध किया। मंदिर का जीर्णोद्धार मझौली राज परिवार द्वारा कराया गया था, जिसमें तत्कालीन महारानी श्याम सुंदरी कुंवरी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। बाद में बांसुरी बाबा, टेंगरी दास और ब्रह्मलीन बंगाली बाबा जैसे संतों ने मंदिर के विकास में अहम भूमिका निभाई।
स्थानीय लोगों का विश्वास है कि महाभारत के योद्धा अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव ने दीर्घायु होने का वरदान दिया था, जिसके कारण इस मंदिर का नाम "दीर्घेश्वर नाथ मंदिर" पड़ा। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और इतिहास का अद्भुत संगम है। मंदिर की सबसे रोचक बात यह है कि हर सुबह जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तो शिवलिंग पर पहले से ही बेलपत्र और फूल चढ़े हुए मिलते हैं। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह पूजा आज भी स्वयं अश्वत्थामा यहाँ आकर करते हैं।