क्या आपको देवताओं के गुरु से ज्ञान, संतान और धन की आवश्यकता है? इन मंदिरों में जाकर करें दर्शन!

सारांश
Key Takeaways
- बृहस्पति ग्रह का ज्ञान और धन के साथ गहरा संबंध है।
- गुरुवार को विशेष पूजा विधियों का पालन करें।
- कुंडली में बृहस्पति की स्थिति का ध्यान रखें।
- दान और सेवा से गुरु ग्रह के प्रभाव को सुधारें।
- प्रमुख मंदिरों में जाकर पूजा करने से विशेष लाभ मिल सकता है।
नई दिल्ली, 23 जून (राष्ट्र प्रेस)। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, 9 ग्रहों में से बृहस्पति ग्रह को देवताओं का गुरु माना गया है। इसका अर्थ है कि गुरु ग्रह ज्ञान, सोच, संवाद, वाणी, धन, स्वास्थ्य और मान-प्रतिष्ठा का प्रतीक है। शास्त्रों के अनुसार, देवताओं ने भी भगवान बृहस्पति देव (गुरु) से ही ज्ञान प्राप्त किया।
गुरु को ज्योतिष में शिक्षा का कारक माना गया है। कुंडली में एक मजबूत बृहस्पति धन और बुद्धि प्रदान करता है, जो व्यक्ति को उच्च ज्ञान और भाग्य का उदय करता है। यह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विकास का कारण बनता है।
कुंडली में शुभ मंगल जहां आपको सुंदर जीवन साथी प्रदान करता है, वहीं शुभ बृहस्पति की उपस्थिति जातक के विवाह को बनाए रखने में मदद करती है।
हालांकि, बृहस्पति सभी ग्रहों में सबसे अधिक लाभकारी होने के बावजूद, कभी-कभी यह नीच या क्रूर ग्रहों के प्रभाव से प्रतिकूल प्रभाव भी डालता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, गुरु ग्रह का स्वामित्व धनु और मीन राशि पर है, जबकि इसकी नीच राशि मकर है। इस प्रकार, किसी जातक की कुंडली में यदि गुरु का शनि या केतु के साथ संबंध हो, तो यह बेहद बुरा माना जाता है।
ऐसे जातकों को जिनकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर है, उन्हें शक्कर, केला, पीला वस्त्र, केसर, नमक, पीली मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन का दान करना उचित माना जाता है। इसके साथ ही, रक्तदान करने से भी गुरु ग्रह का शुभ लाभ मिलता है। गुरुवार को केले की जड़ की पूजा करना और भगवान विष्णु की पूजा करना, बृहस्पतिवार के व्रत कथा का श्रवण करना और इस दिन उपवास रखना अच्छा माना जाता है। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा भी करनी चाहिए।
गुरु को शुभ बनाने के लिए, आप अपने माथे पर चंदन का लेप या तिलक कर सकते हैं। आप पीले रंग के आभूषण, जिसमें सोना सबसे शुभ माना जाता है, धारण कर सकते हैं। इसके अलावा, इस दिन पीले परिधान पहनना भी शुभ रहता है। गुरुवार को गाय को चारा खिलाना और उसकी सेवा करना कुंडली में गुरु ग्रह के शुभ प्रभावों को बढ़ाता है। इससे नवग्रहों की शांति भी होती है।
वाराणसी, जो भगवान शिव की नगरी है, वहां गुरु बृहस्पति का एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है। इसे दशाश्मेध घाट मार्ग पर स्थित किया गया है। यहां गुरु बृहस्पति देव की पूजा की जाती है। लोग संतान की प्राप्ति के लिए यहां विशेष रूप से आते हैं।
उत्तराखंड के नैनीताल जिले के ओखलकांडा क्षेत्र में भी देवगुरु बृहस्पति का मंदिर है, जो देवगुरु पर्वत की चोटी पर स्थित है।
राजस्थान की राजधानी जयपुर में भगवान बृहस्पति देव का एक मंदिर है, जहां शुद्ध सोने की प्रतिमा स्थापित है।
तमिलनाडु के तिरुवरूर जिले के अलंगुड़ी में श्री आपत्सहायेश्वर महादेव का मंदिर है, जहां भगवान बृहस्पति की प्रतिमा भी है। यहां लोग कुंडली के ग्रह दोषों की शांति के लिए 24 परिक्रमा करते हैं।