क्या भारत के 'पगनिनी' एल. सुब्रमण्यम ने 6 साल की उम्र में अपना पहला परफॉर्मेंस दिया और ग्रैमी में 'वायलिन' का डंका बजाया?

सारांश
Key Takeaways
- एल. सुब्रमण्यम का जन्म 23 जुलाई 1947 को हुआ।
- उन्होंने 6 साल की उम्र में अपना पहला परफॉर्मेंस दिया।
- उन्हें कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जैसे पद्म श्री और पद्म भूषण।
- उन्होंने 200 से अधिक रिकॉर्डिंग्स की हैं।
- दुनिया भर के प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ सहयोग किया है।
नई दिल्ली, 22 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय शास्त्रीय संगीत ने हमारे देश को अनगिनत रत्न प्रदान किए हैं, जिन्होंने न केवल इस देश की समृद्ध परंपरा को वैश्विक मंच पर उजागर किया, बल्कि भारतीय और पश्चिमी संगीत का एक अनूठा मिश्रण भी प्रस्तुत किया है। इनमें से एक अद्वितीय सितारा हैं डॉ. एल. सुब्रमण्यम, जिन्हें 'भारतीय वायलिन का पगनिनी' कहा जाता है। अपनी असाधारण वायलिन वादन शैली, कर्नाटक संगीत की गहरी समझ और वैश्विक फ्यूजन की रचनाओं के माध्यम से उन्होंने भारतीय संगीत को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दिलाई।
डॉ. सुब्रमण्यम भारतीय शास्त्रीय संगीत (कर्नाटक संगीत) और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में अपनी असाधारण प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने वैश्विक संगीत को एक नया आयाम दिया, जिसमें भारतीय और पश्चिमी संगीत का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है।
एल. सुब्रमण्यम का जन्म 23 जुलाई 1947 को चेन्नई में एक संगीत प्रेमी परिवार में हुआ। उनके पिता प्रोफेसर वी. लक्ष्मीनारायण एक प्रसिद्ध वायलिन वादक थे और उनकी माता वी. सीतलक्ष्मी एक गायिका और वीणा वादक थीं। कहा जाता है कि सुब्रमण्यम ने महज पाँच साल की उम्र से पहले ही संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया था और छह साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला परफॉर्मेंस दिया। कुछ समय के लिए उनका परिवार श्रीलंका के जाफना में रहा और फिर वहां के तमिल विरोधी दंगों के कारण चेन्नई वापस लौट आया।
इंडियन कल्चर की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, डॉ. लक्ष्मीनारायण सुब्रमण्यम को कर्नाटक संगीत और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत दोनों में महारत हासिल है। उन्होंने अपने पिता की देखरेख में कम उम्र में संगीत की शिक्षा शुरू की और छह साल की उम्र में पहला सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया। 1970 के दशक से अब तक उन्होंने अपने संगीत को लगातार रिकॉर्ड किया है और एकल एल्बम के अलावा येहुदी मेनुहिन और हेरबी हैनकॉक जैसे कई प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ मिलकर एल्बम जारी किए हैं। उन्होंने कई प्रतिष्ठित कर्नाटक संगीत गायकों जैसे शेम्मंगुडी श्रीनिवास अय्यर और एम. बालमुरलीकृष्ण के साथ प्रदर्शन किए हैं। इसके साथ ही उन्होंने नृत्य नाटकों, वादक समूहों (आर्केस्ट्रा) और फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया और लक्ष्मीनारायण विश्व संगीत मेले की स्थापना की।
सुब्रमण्यम ने संगीत के साथ-साथ चिकित्सा क्षेत्र में भी रुचि दिखाई। उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की। हालांकि, संगीत के प्रति उनके जुनून के आगे डॉक्टर के रूप में उनका कार्यकाल सीमित रहा। इसके बाद वे फिर से संगीत के क्षेत्र में सक्रिय हुए और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट्स से पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में मास्टर डिग्री और जैन यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु से रागा हार्मनी पर शोध के लिए पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
सुब्रमण्यम ने 1973 से अब तक 200 से अधिक रिकॉर्डिंग्स की हैं, जिसमें सिंगल एल्बम और विश्व के प्रसिद्ध संगीतकारों जैसे येहुदी मेनुहिन, स्टेफन ग्रेप्पेली, जॉर्ज हैरिसन और हेर्बी हैनकॉक के साथ सहयोग शामिल है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने हिंदुस्तानी संगीतकारों जैसे उस्ताद अली अकबर खान और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के साथ भी जुगलबंदी की। सुब्रमण्यम ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा को अपनी वायलिन के तारों में पिरोकर उसे विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया। 1970 के दशक में उन्होंने वैश्विक फ्यूजन संगीत की अवधारणा को जन्म दिया, जिसमें कर्नाटक संगीत, पश्चिमी शास्त्रीय संगीत, जैज और अन्य वैश्विक शैलियों का संगम देखने को मिलता है।
सुब्रमण्यम ने मीरा नायर की फिल्मों जैसे सलाम बॉम्बे (1988) और मिसिसिपी मसाला (1991) के लिए संगीत तैयार किया। इसके अलावा, उन्होंने बर्नार्डो बेर्तोलुची की लिटिल बुद्धा (1993) और मर्चेंट-आइवरी की कॉटन मैरी (1999) में वायलिन वादक के रूप में भी योगदान दिया।
1992 में उन्होंने अपने पिता की स्मृति में लक्ष्मीनारायण ग्लोबल म्यूजिक फेस्टिवल की स्थापना की, जो विश्व भर में आयोजित होता है। इस फेस्टिवल में येहुदी मेनुहिन, स्टैनली क्लार्क, और रवि कोलट्रेन जैसे कलाकारों ने प्रदर्शन किया है।
भारतीय संगीत में उनके योगदान के लिए सुब्रमण्यम को 1988 में पद्म श्री, 2001 में पद्म भूषण और 1990 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सहित कई सम्मानों से नवाजा गया है। इसके अलावा, उन्हें 1981 में ग्रैमी नामांकन भी मिला था। उनके पारिवारिक जीवन में उनकी पहली शादी विजयाश्री (विजी) सुब्रमण्यम से हुई, जो एक प्रसिद्ध गायिका थीं और 1995 में कैंसर के कारण उनका निधन हो गया था। फिर भी, उनके चार बच्चे हैं। इसके अलावा, 1999 में उन्होंने मशहूर प्लेबैक सिंगर कविता कृष्णमूर्ति से शादी की, जिनसे उनका एक बेटा भी है।