क्या गंगूबाई हंगल ने ‘गानेवाली’ कहकर ताने सुनने के बावजूद शास्त्रीय संगीत में अद्वितीय स्थान बनाया?

सारांश
Key Takeaways
- गंगूबाई हंगल ने सामाजिक बाधाओं को पार करते हुए अद्वितीय स्थान बनाया।
- उनकी आवाज में गहराई और भावनाओं का समावेश था।
- वे कई पुरस्कारों से सम्मानित हुईं, जैसे पद्म भूषण और पद्म विभूषण।
- उनका जीवन संघर्ष और समर्पण की प्रेरणा है।
- गंगूबाई की विरासत संगीत की दुनिया में अमिट है।
नई दिल्ली, 20 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक अद्वितीय आवाज, जिसने न केवल रागों को नई जान दी, बल्कि सामाजिक सीमाओं को पार कर एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया। वे थीं गंगूबाई हंगल। जिन्हें लोग अक्सर ‘गानेवाली’ कहकर ताना मारते थे। बावजूद इसके, उन्होंने अपनी शक्तिशाली आवाज और किराना घराने की गायकी से संगीत के क्षेत्र में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त किया है, जिसे कोई और नहीं भर सकता। 21 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि है।
साल 1913 में कर्नाटक के धारवाड़ में एक केवट परिवार में जन्मी गंगूबाई का बचपन कठिनाइयों से भरा था। उनकी माँ अंबाबाई एक कर्नाटक संगीत गायिका थीं, जिन्होंने गंगूबाई को संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी। 13 वर्ष की आयु में उन्होंने किराना घराने के उस्ताद सवाई गंधर्व से औपचारिक प्रशिक्षण लेना शुरू किया। हालांकि, समाज में व्याप्त रूढ़ियों के कारण उन्हें ‘गानेवाली’ कहकर ताने सुनने पड़े। उस समय महिलाओं का सार्वजनिक मंच पर गाना एक बड़ा मुद्दा था। एक ऐसी जाति का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला के लिए जो सामाजिक वर्गीकरण में निचले पायदान पर मानी जाती थी, यह और भी चुनौतीपूर्ण था। फिर भी, गंगूबाई ने कभी हार नहीं मानी।
उनकी आत्मकथा 'ए लाइफ इन थ्री ऑक्टेव्स: द म्यूजिकल जर्नी ऑफ गंगूबाई हंगल' में इन संघर्षों का उल्लेख है। गंगूबाई की गायकी की विशेषता उनकी गहरी, स्थिर और भावपूर्ण प्रस्तुति में थी। वे हर राग को धीरे-धीरे, जैसे सूरज की किरणों के साथ फूल की पंखुड़ियां खिलती हैं, वैसे खोलती थीं। उनकी आवाज में एक गहराई थी, जो श्रोताओं के दिलों को छू जाती थी। 1930 के दशक में मुंबई के स्थानीय समारोहों और गणेश उत्सवों से शुरू हुआ उनका सफर ऑल इंडिया रेडियो और देश भर के मंचों तक पहुंचा। पहले उन्होंने भजन और ठुमरी गाई, लेकिन बाद में केवल रागों पर ध्यान केंद्रित किया। उनकी गायकी ने किराना घराने की परंपरा को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।
गंगूबाई के योगदान को कई सम्मानों से नवाजा गया है। साल 1962 में उन्हें कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार मिला। 1971 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और 2002 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 1973 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1996 में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप प्राप्त हुई। 1997 में दीनानाथ प्रतिष्ठान और 1998 में माणिक रतन पुरस्कार ने उनकी उपलब्धियों को और भी उजागर किया।
गंगूबाई की विरासत को सम्मानित करने के लिए कर्नाटक सरकार ने 2008 में कर्नाटक स्टेट डॉ. गंगूबाई हंगल म्यूजिक एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स यूनिवर्सिटी की स्थापना की। इसके अलावा, 2014 में भारत सरकार ने उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया।
गंगूबाई का जीवन एक प्रेरणा स्रोत है। 16 वर्ष की आयु में विवाह, 20 वर्ष की आयु में पति का निधन और बेटी कृष्णा की कैंसर से मृत्यु, इन सभी दुखों के बावजूद उन्होंने संगीत को आगे बढ़ाया। 2006 में उन्होंने 75 वर्षों के करियर का जश्न मनाते हुए अपनी अंतिम प्रस्तुति दी।
21 जुलाई 2009 को 97 वर्ष की आयु में हृदय रोग के कारण उनका निधन हो गया।