क्या गायघाट में जातीय समीकरण और बाढ़ का मुद्दा चुनावी बाजी पलट देगा?
सारांश
Key Takeaways
- गायघाट विधानसभा क्षेत्र का इतिहास राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
- यहां की जातीय समीकरण चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं।
- बाढ़ और रोजगार की कमी जैसी स्थानीय चुनौतियां हैं।
- गायघाट की आर्थिकी मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है।
- यहां के मतदाता हर चुनाव में नया समीकरण बनाते हैं।
पटना, २४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की गायघाट विधानसभा सीट उन राजनीतिक धरातलों में मानी जाती है, जहां हर चुनाव में एक नया समीकरण देखने को मिलता है। इसके साथ ही, जातीय गणित और स्थानीय मुद्दे भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह सीट सामान्य वर्ग की विधानसभा है, जिसका गठन वर्ष १९६७ में हुआ था।
अब तक इस सीट पर १४ चुनाव हो चुके हैं। २००८ के परिसीमन के बाद यह सीट गायघाट और बंदरा प्रखंडों के साथ-साथ कटरा प्रखंड के छह ग्राम पंचायतों को मिलाकर बनी। यह पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र है।
गायघाट मुजफ्फरपुर जिले के उत्तर भाग में स्थित है। इसकी सीमाएं औराई, कटरा और मीनापुर प्रखंडों से मिलती हैं। गंडक और बागमती नदियों के किनारे बसी यह भूमि अत्यंत उपजाऊ और समतल है, लेकिन बंदरा प्रखंड के कई हिस्से हर साल बाढ़ की चपेट में आते हैं। गायघाट रेलवे स्टेशन, समस्तीपुर–मुजफ्फरपुर रेल मार्ग पर स्थित है, जबकि यह क्षेत्र सड़क मार्ग से मुजफ्फरपुर (३५ किमी), दरभंगा (५५ किमी) और सीतामढ़ी (६० किमी) से जुड़ा हुआ है।
यहां की आर्थिकी मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। धान, गेहूं, मक्का और दाल की खेती यहां प्रमुखता से की जाती है। छोटे स्तर पर चावल मिलें और कृषि व्यापार केंद्र स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करते हैं। रोजगार की कमी के कारण युवाओं का पलायन यहां एक गंभीर मुद्दा है।
गायघाट का इतिहास काफी दिलचस्प और उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। इस सीट ने कई नेताओं को राजनीतिक पहचान दी है, जिनमें सबसे प्रमुख नाम हैं महेश्वर प्रसाद यादव। उन्होंने यहां कई बार चुनाव लड़ा और विभिन्न दलों से जीत भी दर्ज की। १९९० के चुनाव में उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में, १९९५ में जनता दल और फिर २००५ और २०१५ में राजद (राष्ट्रीय जनता दल) के टिकट पर जीत हासिल की। भाजपा की वीणा देवी ने २०१० के चुनाव में उन्हें करारी शिकस्त दी थी, लेकिन २०१५ में उन्होंने वापसी करते हुए वीणा देवी को हराया।
२०२० का चुनाव गायघाट के लिए राजनीतिक दृष्टि से निर्णायक मोड़ साबित हुआ। राजद ने निरंजन राय को मैदान में उतारा, जिन्होंने जदयू के महेश्वर यादव को हराया। इस चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने भी अपने उम्मीदवार उतारे, जिससे वोटों का बंटवारा हुआ और राजद को सीधा लाभ मिला।
जातीय समीकरणों की बात करें तो गायघाट में यादव, कुशवाहा, ब्राह्मण, भूमिहार, दलित और मुसहर समुदायों की निर्णायक भूमिका है। यादव और मुस्लिम मतदाता राजद के पारंपरिक वोट बैंक हैं, जबकि भूमिहार और ब्राह्मण भाजपा के साथ जुड़े रहते हैं। जदयू का आधार पिछड़े वर्गों और दलित समुदायों में है।
गायघाट के सामने आज भी बाढ़, सड़क, सिंचाई और रोजगार जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं। हर साल गंडक और बागमती की बाढ़ फसलों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे किसान परेशान रहते हैं। स्वास्थ्य सेवाएं सीमित हैं और गांवों में शिक्षा और रोजगार के अवसरों की कमी सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है।
२०२४ में चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, गायघाट विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या ५,५३,३१९ है, जिसमें २,८९,०८९ पुरुष और २,६४,२३० महिलाएं शामिल हैं। कुल मतदाताओं की संख्या ३,३०,३७१ है, जिनमें १,७३,९६१ पुरुष, १,५६,४०४ महिलाएं और ६ थर्ड जेंडर वोटर हैं।