क्या लिंकन का गेटिसबर्ग चमत्कार ने सोच को बदल दिया?
Key Takeaways
- गेटिसबर्ग एड्रेस का महत्व लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता में है।
- यह भाषण केवल 272 शब्द का था, लेकिन इसका प्रभाव विशाल है।
- लिंकन ने समानता, स्वतंत्रता और मानव अधिकारों पर जोर दिया।
- यह भाषण युद्ध के समय की सच्चाइयों का प्रतीक है।
- गेटिसबर्ग एड्रेस आज भी शैक्षणिक और राजनीतिक संदर्भों में महत्वपूर्ण है।
नई दिल्ली, 18 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति और 'द ग्रेट लिबरेटर' के नाम से मशहूर अब्राहम लिंकन का एक भाषण इतिहास के सुनहरे पन्नों में अंकित है। 19 नवंबर 1863 को, राष्ट्रपति लिंकन ने गेटिसबर्ग के युद्ध क्षेत्र में खड़े होकर एक ऐसा भाषण दिया, जो मात्र दो मिनट का था, लेकिन इसका प्रभाव सदियों बाद भी महसूस किया जाता है।
अमेरिकी गृहयुद्ध अपने सबसे रक्तरंजित दौर में था। कुछ महीनों पहले गेटिसबर्ग की लड़ाई में हजारों सैनिकों की शहादत हुई थी। उसी स्थान पर एक सैनिक स्मारक की स्थापना के लिए कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें मुख्य भाषण प्रसिद्ध वक्ता एडवर्ड एवरट ने लगभग दो घंटे तक दिया। लेकिन जो बातें लोगों के दिलों में बसीं, वे लिंकन के 272 शब्द थे। ये शब्द इतने कम, लेकिन इतने प्रभावशाली थे कि आज भी लोकतंत्र की व्याख्या के लिए यही भाषण सबसे पहले याद किया जाता है।
लिंकन ने अपने भाषण की शुरुआत उन सिद्धांतों से की जिन पर अमेरिका खड़ा था, जैसे कि समानता, स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक उम्मीदें। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्र स्वतंत्रता में जन्मा था और सभी मनुष्यों को समान मानता है, इसलिए यह युद्ध केवल भूमि के लिए नहीं, बल्कि उस विचार के लिए लड़ा जा रहा था जो मानव समानता को सर्वोपरि रखता है। उन्होंने शहीदों को वह सम्मान दिया जो शब्दों से भी बड़ा था—कहकर कि हम उनका सम्मान शब्दों से नहीं, बल्कि उनके अधूरे कार्य को पूरा करके कर सकते हैं। यह 'अधूरा कार्य' एक ऐसा राष्ट्र सुरक्षित रखना था “जो जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा संचालित हो।” (ऑफ द पीपल, बाइ द पीपल एंड फॉर द पीपल)
गेटिसबर्ग एड्रेस की सबसे महत्वपूर्ण बात इसकी संक्षिप्तता है। लिंकन ने समझा कि युद्ध ने अमेरिका की आत्मा को तोड़ दिया था, और लोगों को लंबे भाषण नहीं, बल्कि स्पष्ट सच्चाई चाहिए थी। उन्होंने देश को बताया कि असली स्मारक सैनिकों के दफन होने का मैदान नहीं, बल्कि वह प्रतिबद्धता है जो लोग उनकी कुर्बानी को आगे बढ़ाने के लिए दिखाएंगे। यही कारण है कि उनका दो-मिनट का भाषण एक राष्ट्रीय वादा बन गया कि लोकतंत्र जीवित रहेगा, और यह युद्ध राष्ट्र को एक मजबूत, समान और स्वतंत्र पहचान देगा।
आज, गेटिसबर्ग एड्रेस को विश्व के महानतम भाषणों में गिना जाता है। इसे विद्यालयों में पढ़ाया जाता है, राजनीतिक संवाद का उदाहरण माना जाता है और लोकतंत्र की मूल अवधारणाओं का प्रतीक माना जाता है।