क्या महादेव 'करुणा के ईश्वर' के रूप में यहां विराजते हैं और संतान प्राप्ति के लिए लोग इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं?

सारांश
Key Takeaways
- घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन संतान प्राप्ति में मदद करता है।
- यह मंदिर एलोरा की गुफाओं के पास स्थित है।
- यहां १०१ पार्थिव शिवलिंग की परिक्रमा का महत्व है।
- सूर्य की आराधना के कारण इसे पूर्वमुखी माना जाता है।
- यह विश्व धरोहर स्थल यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त है।
नई दिल्ली, १३ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। बारह ज्योतिर्लिंगों में अंतिम ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर महादेव महाराष्ट्र के संभाजीनगर में स्थित है। यह प्राचीन मंदिरों में से एक है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर भगवान शंकर को समर्पित है। भगवान शिव के करुणामय स्वरूप का प्रतीक यह मंदिर, जहां शिव को 'घृष्णेश्वर' या 'करुणा के ईश्वर' के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं और इसके स्मरण मात्र से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है। यह मंदिर एलोरा की विश्वप्रसिद्ध गुफाओं के पास स्थित है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पूर्वमुखी है। इसे लेकर कहा जाता है कि घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग और देवगिरि दुर्ग के बीच एक सहस्रलिंग पातालेश्वर (सूर्येश्वर) महादेव का मंदिर है, जिनकी आराधना सूर्य भगवान करते हैं। इसी कारण यह ज्योतिर्लिंग भी पूर्वमुखी है। मान्यता है कि सूर्य द्वारा पूज्य होने के कारण घृष्णेश्वर त्रिविध तापों (दैहिक, दैविक, भौतिक) का हरण कर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे सुख प्रदान करते हैं। शिव पुराण के अनुसार, जिस प्रकार शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में चंद्रमा को देखकर सुख की अनुभूति होती है, उसी प्रकार घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन कर मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है।
वहीं पद्मपुराण में इस ज्योतिर्लिंग के बारे में वर्णित है कि यहां रात में महादेव इसी शिवालय तीर्थ के पास ही निवास करते हैं। इसलिए घृष्णेश्वर में शयन आरती का विशेष महत्व है। सभी जगह १०८ शिवलिंग का महत्व बताया जाता है किंतु यहां पर १०१ का महत्व है। १०१ पार्थिव शिवलिंग बनाए जाते हैं और १०१ ही परिक्रमा की जाती है।
इस ज्योतिर्लिंग को लेकर द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में लिखा है...
इलापुरे रम्यविशालकेऽस्मिन् समुल्लसन्तं च जगद्वरेण्यम्। वन्दे महोदारतरस्वभावं घृष्णेश्वराख्यं शरणम् प्रपद्ये॥
जो इलापुर के सुरम्य मंदिर में विराजमान होकर समस्त जगत् के आराध्य हैं, जिनका स्वभाव बड़ा ही उदार है, उन घृष्णेश्वर नामक ज्योतिर्मय भगवान शिव की शरण में मैं जाता हूं।
यहां पास में एक सरोवर भी है, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग की यात्रा बिना शिवालय दर्शन के पूरी नहीं होती। यहां पास में ‘लक्ष विनायक’ का मंदिर है। कथा के अनुसार तारकासुर के वध के बाद भगवान शिव ने यहां गणेशजी की स्थापना कर उनकी पूजा की थी। यहां स्कंदमाता ने मूर्ति स्थापित की थी। यह मंदिर २१ गणेश पीठों में से एक है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित एलोरा की गुफाएं यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं। इन गुफाओं में अद्भुत मूर्तियां और कलाकृतियां हैं, जिनमें छठी और नौवीं शताब्दी के हिंदू, बौद्ध और जैन शैलकृत मंदिर और मठ हैं।