क्या पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की जगह गाकर मिली थी गिरिजा देवी को पहचान? जानिए उनकी प्रेरणादायक कहानी

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क्या पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की जगह गाकर मिली थी गिरिजा देवी को पहचान? जानिए उनकी प्रेरणादायक कहानी

सारांश

गिरिजा देवी, जिन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत में 'ठुमरी की रानी' कहा जाता है, ने पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की जगह प्रस्तुति देकर अपनी पहचान बनाई। आइए जानते हैं उनके जीवन के संघर्ष और उपलब्धियों के बारे में।

Key Takeaways

  • गिरिजा देवी को 'ठुमरी की रानी' के नाम से जाना जाता था।
  • उन्होंने पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की जगह गाकर प्रसिद्धि हासिल की।
  • उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, जैसे 'पद्मश्री' और 'पद्म विभूषण'।
  • गिरिजा देवी ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में नए कलाकारों को सिखाया।
  • उनका संगीत आज भी लोगों के दिलों में बसा है।

मुंबई, 24 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में ‘ठुमरी की रानी’ के नाम से मशहूर गिरिजा देवी बनारस घराने से जुड़ी हुई थीं। उन्होंने अपने सुरों से देश-विदेश में लोगों का दिल जीता। एक समय ऐसा था जब उनकी गायिकी सुनकर लोग भावुक हो जाते थे। गिरिजा देवी ने शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ उपशास्त्रीय शैलियों जैसे ठुमरी, दादरा और पूर्वी अंग को नई ऊंचाई पर पहुँचाया।

गिरिजा देवी का जन्म 8 मई 1929 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। उन्हें बचपन से ही ठुमरी और शास्त्रीय संगीत में गहरी रुचि थी, जिसके चलते उन्होंने घर छोड़कर दो साल तक गुरुओं के पास रहकर संगीत की कड़ी शिक्षा ली। यही कारण था कि उनका गाना शास्त्रीय और उपशास्त्रीय दोनों शैलियों में अद्वितीय था।

गिरिजा देवी की शादी छोटी उम्र में हो गई थी। शादी के पाँच साल बाद उन्होंने रेडियो पर गाना शुरू किया, लेकिन उनकी असली पहचान तब बनी जब उन्होंने बिहार के आरा में एक कॉन्फ्रेंस में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की जगह प्रस्तुति दी।

दरअसल, कॉन्फ्रेंस में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर गाना चाहते थे, लेकिन उनकी गाड़ी खराब हो गई और वह समय पर नहीं पहुँच सके। आयोजकों ने गिरिजा देवी को मौका दिया और उन्होंने मंच पर गाकर सबको हैरान कर दिया। इसके बाद उनकी जिंदगी का सफर बदल गया।

उन्होंने रेडियो कार्यक्रम, स्टेज शो और कॉन्फ्रेंस में गायन करना शुरू कर दिया, और हर जगह उनकी गायकी की तारीफ होने लगी। 1952 में उन्हें दिल्ली बुलाया गया था, लेकिन इससे पहले उन्होंने बनारस कॉन्फ्रेंस में गायन प्रस्तुत किया था।

बनारस कॉन्फ्रेंस में गिरिजा के सामने सितार वादक रविशंकर, सरोद वादक अली अकबर खान, और सितार वादक विलायत खान जैसे दिग्गज उपस्थित थे। रविशंकर को उनकी ठुमरी इतनी पसंद आई कि उन्होंने गिरिजा को दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में बुलाया। वहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और कई मंत्रियों के सामने उन्होंने ठुमरी गाई। उनकी आवाज ने सभी को मोहित कर दिया।

गिरिजा देवी के योगदान को सरकार ने कई सम्मान देकर सराहा। 1972 में उन्हें ‘पद्मश्री’ मिला, 1989 में ‘पद्म भूषण’ से नवाजा गया और 2016 में ‘पद्म विभूषण’ प्रदान किया गया। इसके अलावा उन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी’ पुरस्कार भी मिला।

जिंदगी के अंतिम वर्षों में गिरिजा देवी कोलकाता में निवास करती थीं, जहाँ वे संगीत रिसर्च अकादमी में समय बिताती और नए कलाकारों को सिखाती थीं। 24 अक्टूबर 2017 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन कोलकाता में हुआ।

Point of View

बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक महिला ने भारतीय संगीत में अपने लिए एक अद्वितीय स्थान बनाया। यह उनके संघर्ष और समर्पण की गाथा है, जो आज की युवा पीढ़ी को प्रेरित करती है।
NationPress
23/10/2025

Frequently Asked Questions

गिरिजा देवी का जन्म कब हुआ था?
गिरिजा देवी का जन्म 8 मई 1929 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
उन्हें कौन से पुरस्कार मिले हैं?
गिरिजा देवी को 'पद्मश्री', 'पद्म भूषण', और 'पद्म विभूषण' जैसे कई पुरस्कार मिले हैं।
गिरिजा देवी को कब और कहाँ पहचान मिली?
उन्हें पहचान तब मिली जब उन्होंने पंडित ओंकारनाथ ठाकुर की जगह बिहार के आरा में एक कॉन्फ्रेंस में गाया।
गिरिजा देवी का निधन कब हुआ?
गिरिजा देवी का निधन 24 अक्टूबर 2017 को कोलकाता में हुआ।
गिरिजा देवी के योगदान को कैसे याद किया जाता है?
गिरिजा देवी के योगदान को उनके संगीत और शिक्षण के माध्यम से हमेशा याद किया जाता है।