क्या गोरियाकोठी सीट पर सत्ता का रोमांचक खेल जारी रहेगा?

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क्या गोरियाकोठी सीट पर सत्ता का रोमांचक खेल जारी रहेगा?

सारांश

गोरियाकोठी विधानसभा सीट पर राजनीतिक रोमांच का खेल जारी है। यहां की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और स्थानीय मुद्दे चुनावी नतीजों को प्रभावित कर रहे हैं। जानें, यह सीट क्यों है महत्वपूर्ण और इसके मतदाता किन मुद्दों से जूझ रहे हैं।

Key Takeaways

  • गोरियाकोठी सीट का गठन 2008 में हुआ था।
  • यह क्षेत्र कृषि आधारित और ग्रामीण है।
  • यहां की प्रमुख फसलें धान, गेहूं और मक्का हैं।
  • इस सीट पर भाजपा और राजद के बीच सत्ता का अदला-बदली होती रही है।
  • मतदाताओं के मुद्दे स्थानीय और कृषि आधारित हैं।

पटना, 14 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की गोरियाकोठी विधानसभा सीट सामान्य श्रेणी की है। यह राजनीति, इतिहास और लोकजीवन का एक दिलचस्प मिश्रण प्रस्तुत करती है। यह सीट सिवान जिले में आती है और महाराजगंज लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले छह विधानसभा क्षेत्रों में से एक है।

साल 2010 में बसंतपुर और लकड़ी नबीगंज प्रखंडों को गोरियाकोठी प्रखंड के साथ मिलाकर इसका नया गठन हुआ, जिसके बाद यह क्षेत्र प्रशासनिक रूप से अधिक सशक्त हुआ।

गोरियाकोठी का इतिहास ब्रिटिश शासनकाल तक जाता है। माना जाता है कि उस समय यहां किसी अंग्रेज नील व्यापारी, राजस्व अधिकारी या जिले के किसी वरिष्ठ अफसर का एक बंगला हुआ करता था। स्थानीय लोग इसे गोरिया का कोठी कहने लगे, जो समय के साथ बोलचाल में गोरियाकोठी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। गोरियाकोठी प्रखंड मुख्यालय सिवान जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर पूर्व स्थित है। यह महाराजगंज, बसंतपुर और लकड़ी नबीगंज जैसे कस्बों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है, जबकि नजदीकी प्रमुख रेलवे स्टेशन सिवान है।

यह क्षेत्र पूर्णतः ग्रामीण और कृषि आधारित है। यहां की उपजाऊ भूमि और जलवायु कृषि को प्रमुख आजीविका का माध्यम बनाती है। धान, गेहूं और मक्का यहां की प्रमुख फसलें हैं, जबकि कुछ इलाकों में गन्ने की खेती भी की जाती है। हालांकि, क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग नहीं है, जिससे रोजगार और पलायन आज भी मुख्य सामाजिक मुद्दों में शामिल हैं।

राजनीतिक दृष्टि से गोरियाकोठी का इतिहास काफी रोचक रहा है। हालांकि वर्तमान स्वरूप में यह सीट 2008 में पुनर्गठित हुई और पहला चुनाव 2010 में हुआ, लेकिन यह 1967 से ही विधानसभा क्षेत्र के रूप में अस्तित्व में था। पुनर्संरचना से पहले हुए 11 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने चार बार, भाजपा, जनता दल और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने दो-दो बार, जबकि लोकतांत्रिक कांग्रेस ने एक बार जीत दर्ज की थी।

2010 के बाद यह सीट भाजपा और राजद के बीच सत्ता की अदला-बदली का केंद्र बन गई। 2010 में भाजपा के भूमेंद्र नारायण सिंह ने जीत हासिल की। 2015 में राजद के सत्यदेव प्रसाद सिंह ने सीट पर कब्जा जमाया। वहीं, 2020 में भाजपा के देवेश कांत सिंह ने वापसी करते हुए जीत दर्ज की। पिछले डेढ़ दशक में गोरियाकोठी में सत्ता का पलड़ा बार-बार बदलता रहा है, जिससे यह सीट हमेशा राजनीतिक रूप से चर्चित रही है।

2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, गोरियाकोठी विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 5,76,015 है। इनमें 2,93,564 पुरुष और 2,82,451 महिलाएं शामिल हैं। वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,40,332 है, जिनमें 1,76,468 पुरुष, 1,63,861 महिलाएं और 3 थर्ड जेंडर शामिल हैं।

यहां के मतदाता मुख्य रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं, जिनके मुद्दे खेती-किसानी, सिंचाई, सड़क, शिक्षा और रोजगार जैसे स्थानीय सवालों से जुड़े हैं। गोरियाकोठी विधानसभा की राजनीति स्थानीय मुद्दों और जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। कृषि संकट, ग्रामीण सड़कें, शिक्षा और युवाओं के पलायन जैसी समस्याएं हर चुनाव में केंद्रीय मुद्दा बनती हैं।

Point of View

NationPress
14/10/2025

Frequently Asked Questions

गोरियाकोठी विधानसभा सीट का गठन कब हुआ?
गोरियाकोठी विधानसभा सीट का गठन 2008 में पुनर्गठन के बाद हुआ था, और पहला चुनाव 2010 में हुआ।
गोरियाकोठी की प्रमुख फसलें क्या हैं?
गोरियाकोठी में धान, गेहूं और मक्का प्रमुख फसलें हैं।
गोरियाकोठी क्षेत्र की कुल जनसंख्या कितनी है?
गोरियाकोठी विधानसभा क्षेत्र की कुल जनसंख्या 5,76,015 है।
गोरियाकोठी के मतदाता किन मुद्दों से प्रभावित हैं?
गोरियाकोठी के मतदाता मुख्य रूप से खेती-किसानी, सिंचाई, सड़क, शिक्षा और रोजगार जैसे स्थानीय मुद्दों से प्रभावित हैं।
गोरियाकोठी सीट पर पिछले चुनावों में किसने जीत हासिल की?
2010 में भाजपा के भूमेंद्र नारायण सिंह, 2015 में राजद के सत्यदेव प्रसाद सिंह और 2020 में भाजपा के देवेश कांत सिंह ने जीत हासिल की।