क्या जीएसटी सुधारों से भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स की ग्रोथ को मिलेगी रफ्तार?

सारांश
Key Takeaways
- जीएसटी सुधारों से जीसीसी की वृद्धि होगी।
- प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में सुधार होगा।
- लागत संरचना में सुधार और कैश फ्लो में वृद्धि होगी।
- निर्यात के लाभों से जीसीसी को जुड़ने का मौका मिलेगा।
- नई प्रक्रियाओं के कारण कार्यशील पूंजी का दबाव कम होगा।
नई दिल्ली, 7 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जीएसटी सुधारों के कारण देश में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) के संचालन में वृद्धि होगी। इससे वैश्विक स्तर पर भारत में उपस्थित जीसीसी की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में सुधार होगा, साथ ही लागत संरचना में सुधार और कैश फ्लो में भी वृद्धि देखने को मिलेगी। यह जानकारी रविवार को एक रिपोर्ट में साझा की गई।
जीएसटी के 2017 में लागू होने के बाद 56वीं काउंलिस में किए गए सुधारों को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
ग्रांट थॉर्नटन भारत की रिपोर्ट के अनुसार, पहले जीसीसी द्वारा विदेशी सहयोगियों को दी जाने वाली सेवाओं को अक्सर “मध्यस्थ” वर्गीकरण के जोखिम का सामना करना पड़ता था, जिससे विवाद उत्पन्न होते थे और सेवाओं पर जीएसटी लागू किया जाता था। इस कारण, जीसीसी को निर्यात के लाभों से वंचित रखा जाता था।
रिपोर्ट में कहा गया है, “आईजीएसटी अधिनियम की धारा 13(8)(बी) के हटने से, ऐसी सेवाओं के लिए आपूर्ति का स्थान अब प्राप्तकर्ता के स्थान के आधार पर तय किया जाएगा। इससे यह सुनिश्चित होगा कि विदेशों में वितरित सेवाओं को निर्यात माना जाएगा और वे शून्य-रेटिंग और आईटीसी रिफंड के लिए योग्य होंगी।”
इस संशोधन से निश्चितता और प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि होगी और लंबी मुकदमेबाजी से राहत मिल सकती है। इसके अलावा, यह मध्यस्थ कार्यों को भारतीय जीसीसी को हस्तांतरित करके विकास के नए अवसर भी प्रदान करेगा।
काउंलिस ने कई वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी दरों में संशोधन किया है। एयर कंडीशनर, मॉनिटर पर दरों में कमी और यात्री परिवहन/मोटर वाहन किराये तथा हवाई परिवहन सेवाओं (इकोनॉमी क्लास को छोड़कर) पर दरों में वृद्धि की गई है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है, “जीसीसी के लिए, इसका सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, यह खरीदी गई वस्तुओं/सेवाओं की प्रकृति और आईटीसी की पात्रता पर निर्भर करेगा।”
अनंतिम आधार पर 90 प्रतिशत रिफंड स्वीकृत करने से संबंधित प्रावधान पहले से ही मौजूद था। हालांकि, मैन्युअल हस्तक्षेप के कारण, कार्यान्वयन प्रभावी नहीं रहा।
रिपोर्ट में कहा गया, “प्रस्तावित जोखिम-आधारित पहचान और रिफंड दावों के मूल्यांकन से, उपरोक्त प्रावधानों का प्रभावी कार्यान्वयन संभव हो सकता है। यह प्रावधान और प्रक्रिया 1 नवंबर, 2025 से लागू हो जाएंगे। तेज, जोखिम-आधारित रिफंड से कार्यशील पूंजी का दबाव कम होगा और कैश फ्लो में सुधार होगा।”
भारत में जीसीसी की संख्या 2030 तक 1,700 से बढ़कर 2,200 से अधिक होने की उम्मीद है।