क्या गुजरात में लिफ्ट पाइपलाइन तकनीक ने आदिवासी खेती को बदल दिया है?
सारांश
Key Takeaways
- लिफ्ट पाइपलाइन तकनीक ने आदिवासी क्षेत्रों में सिंचाई को सशक्त बनाया है।
- गुजरात सरकार ने 5115 करोड़ रुपए का निवेश किया है।
- किसानों की आय और जीवन स्तर में सुधार हुआ है।
- यह तकनीक पानी की बर्बादी को कम करती है।
- आधुनिक सिंचाई प्रणाली किसानों के लिए वरदान साबित हुई है।
गांधीनगर, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। गुजरात सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों में कृषि और किसानों को सशक्त बनाने के लिए लिफ्ट पाइपलाइन तकनीक का प्रयोग कर सिंचाई सुविधाओं में उल्लेखनीय सुधार किया है। पिछले 7 वर्षों में, राज्य सरकार ने 5115 करोड़ रुपए खर्च कर आदिवासी क्षेत्र की 1,39,510 एकड़ से अधिक कृषि भूमि को सिंचाई से कवर किया है।
मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में, लिफ्ट पाइपलाइन तकनीक के लिए राज्य सरकार ने 2023, 2024, और 2025 के दौरान 2212 करोड़ रुपए से अधिक की राशि आवंटित की है। इसके पूर्व चार वर्षों में (2019 से 2022), 2903 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया गया है ताकि आदिवासी क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं को बेहतर बनाया जा सके।
गुजरात के जल संसाधन एवं जल वितरण मंत्री ईश्वरसिंह पटेल ने कहा, “कृषि और किसानों की समृद्धि हमारी प्राथमिकता है। जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने वनबन्धु कल्याण योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत हम 708 गांवों के किसानों को बारहमासी सिंचाई सुविधा प्रदान करने में सफल रहे हैं। अब हम वनबंधु कल्याण योजना 2.0 के तहत राज्य के अन्य आदिवासी क्षेत्रों को भी सिंचाई युक्त बनाने के लिए कई परियोजनाएं शुरू कर रहे हैं, जिसमें 3,779 करोड़ रुपए का खर्च होगा।”
लिफ्ट पाइपलाइन तकनीक आदिवासी किसानों के लिए एक वरदान साबित हुई है। पहले, इन क्षेत्रों में सिंचाई की स्थिति चिंताजनक थी। अब किसान पूरे साल फसल ले रहे हैं, जिससे उनकी आय और जीवन स्तर में सुधार हुआ है। इसे ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार ने आधुनिक तकनीक से युक्त सिंचाई सुविधाओं को लागू करने के लिए कई परियोजनाएं संचालित की हैं।
यह तकनीक उन क्षेत्रों में उपयोग होती है जहाँ पानी का स्तर खेतों के स्तर से नीचे है। यह शुष्क और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। यह आधुनिक सिंचाई प्रणाली पाइपों के माध्यम से पानी को ऊँचाई पर पहुँचाने में मदद करती है, जिससे पानी का न्यूनतम नुकसान होता है। साथ ही, यह पारंपरिक विधियों की तुलना में कम श्रम की आवश्यकता होती है और फसल उत्पादन में वृद्धि करती है।