क्या आप जानते हैं गुरुवार व्रत से भगवान विष्णु को कैसे प्रसन्न करें?

सारांश
Key Takeaways
- गुरुवार का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
- इस दिन हल्दी, चना दाल, और गुड़ का विशेष महत्व है।
- दान करने से पुण्य मिलता है।
- गुरुवार को पीले वस्त्र पहनना लाभकारी माना जाता है।
- इस व्रत को 16 गुरुवार तक रखा जा सकता है।
नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि गुरुवार को आ रही है। इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा 10 अक्टूबर रात 1 बजकर 23 मिनट तक मेष राशि में रहेंगे। इसके बाद वृषभ राशि में गोचर करेंगे।
द्रिक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा और राहुकाल का समय दोपहर 1 बजकर 36 मिनट से शुरू होकर 3 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। गुरुवार को कोई विशेष योग या त्योहार नहीं है, लेकिन वार के अनुसार आप गुरुवार का व्रत रख सकते हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित होता है।
अग्नि पुराण में उल्लेखित है कि इस दिन भगवान विष्णु ने काशी में शिवलिंग की स्थापना की थी, जिससे इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने का महत्व और बढ़ जाता है।
गुरुवार के दिन व्रत रखने से धन, समृद्धि, संतान और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
मान्यता है कि जो जातक इस दिन व्रत रखते हैं, उन्हें पीले वस्त्र धारण करने चाहिए और पीले फल-फूलों का दान करना चाहिए। ऐसा करने से लाभ मिलता है। वहीं, भगवान विष्णु को हल्दी चढ़ाने से मनोकामना पूर्ण होती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है। गुरुवार को किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न और धन का दान करने से भी पुण्य मिलता है। मान्यता है कि केले के पत्ते में भगवान विष्णु का वास होता है, इसलिए गुरुवार को केले के पत्ते की पूजा की जाती है।
इस व्रत को किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार से शुरू किया जा सकता है और 16 गुरुवार तक व्रत रखकर उद्यापन किया जा सकता है।
इस दिन व्रत प्रारंभ करने के लिए आप ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर पूजन सामग्री रखें, उसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें। फिर केले के वृक्ष की जड़ में चने की दाल, गुड़ और मुनक्का चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करें। दीपक जलाएं, कथा सुनें और भगवान बृहस्पति की आरती करें। उसके बाद आरती का आचमन करें।