क्या हजरतबल दरगाह में अशोक स्तंभ विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है?

सारांश
Key Takeaways
- अशोक चिह्न भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है।
- इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण माना गया है।
- धर्मों को राष्ट्र की एकता के खिलाफ कार्य नहीं करना चाहिए।
- राजनीतिक नेताओं ने सख्त कार्रवाई की मांग की है।
- सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वाली घटनाएं चिंताजनक हैं।
पटना, 7 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। लोजपा (रामविलास) सांसद शांभवी चौधरी ने जम्मू-कश्मीर के हजरतबल दरगाह में उद्घाटन पट्टिका पर अशोक चिह्न तोड़े जाने की घटना की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
सांसद शांभवी चौधरी ने कहा कि अशोक चक्र भारत की आत्मा और एकता का प्रतीक है, जो देश की एकजुटता को दर्शाता है।
उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में इस कृत्य को सांप्रदायिकता के आधार पर गलत ठहराया। उन्होंने जोर देकर कहा कि कोई भी धर्म राष्ट्र की एकता के खिलाफ कार्य करने की शिक्षा नहीं देता। सभी धर्म देशहित को सर्वोपरि मानते हैं और इस घटना के दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।
वहीं, बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने कहा कि यह बहस का विषय है। अशोक चिह्न भारत सरकार का राष्ट्रीय प्रतीक है। कुछ लोगों को यह पसंद आ सकता है, जबकि कुछ को नहीं।
बिहार के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान ने कहा कि कई दशकों से घुसपैठ होती रही है और अब जब वे हताश महसूस कर रहे हैं और खुद को पहले जैसी घटनाएं करने में असमर्थ पा रहे हैं, तो वे इस तरह के कृत्यों का सहारा ले रहे हैं।
उन्होंने कहा कि मैं उन्हें ज्यादा महत्व दूंगा, जिनके अंदर भारतीय होने का गर्व है।
केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह (ललन सिंह) ने कहा कि अशोक चिह्न हमारे राष्ट्र का प्रतीक है। जो कोई भी इसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा, उसे दंडित किया जाना चाहिए।
बिहार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और खेदजनक है। अशोक चिह्न हमारे राष्ट्र के गौरव का प्रतीक है। किसी भी बहाने से इसके साथ छेड़छाड़ करना एक दोषपूर्ण मानसिकता को दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ऐसे रवैये को बढ़ावा दे रही है। इन्हें माफी मांगनी चाहिए और कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन दुख की बात है कि ये लोग चुप रहेंगे।