क्या एचआईवी पॉजिटिव मां सुरक्षित स्तनपान करा सकती है?

सारांश
Key Takeaways
- एचआईवी पॉजिटिव माताओं को सावधानियों का पालन करना चाहिए।
- लो रिस्क माताओं के लिए एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग बेहतर है।
- हाई रिस्क माताओं को फॉर्मूला मिल्क की सलाह दी जा सकती है।
- सही इलाज समय पर शुरू करना आवश्यक है।
- बच्चों का एचआईवी टेस्ट समय समय पर होना चाहिए।
नई दिल्ली, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। मां बनना हर महिला के जीवन का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण अनुभव होता है, लेकिन यदि कोई महिला एचआईवी पॉजिटिव है, तो यह यात्रा थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो सकती है। ऐसी स्थिति में मां और उसके बच्चे की स्वास्थ्य को लेकर कई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। पहले ऐसा माना जाता था कि एचआईवी पॉजिटिव महिला के बच्चे को भी यह संक्रमण हो जाएगा, लेकिन अब समय बदल चुका है। यदि सही इलाज समय पर प्रारंभ किया जाए और डॉक्टरी सलाह का सटीक पालन किया जाए, तो एक एचआईवी पॉजिटिव मां भी एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है और उसे स्तनपान करा सकती है।
नोएडा स्थित सीएचसी भंगेल की सीनियर मेडिकल ऑफिसर और महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. मीरा पाठक ने बताया कि एचआईवी पॉजिटिव माताओं को दो श्रेणियों में बांटा जाता है: 'लो रिस्क मदर' और 'हाई रिस्क मदर'।
डॉ. मीरा ने बताया, 'लो रिस्क मदर' वे महिलाएं होती हैं, जिनमें तीन मुख्य बातें होती हैं: पहली, महिला ने डिलीवरी से कम से कम चार हफ्ते पहले अपना इलाज यानी एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) शुरू कर दी हो, दूसरी, उसके खून में वायरस का असर न के बराबर हो, यानी वायरल लोड पता न चले और तीसरी, महिला के स्तनों में कोई समस्या न हो, जैसे निप्पल में दरार, सूजन या खून आना आदि। यदि ये तीनों बातें किसी महिला में हैं, तो वह 'लो रिस्क' मानी जाती है। वहीं 'हाई रिस्क मदर' वे होती हैं, जिन्होंने अपनी दवाएं डिलीवरी के समय के आसपास शुरू की हों, या जिनके खून में अभी भी वायरस सक्रिय हो यानी वायरल लोड डिटेक्ट हो रहा हो। इसके अलावा, यदि महिला ने सही समय पर दवाई तो शुरू कर दी हो लेकिन स्तनों में कोई समस्या हो, तो भी वह 'हाई रिस्क' श्रेणी में आती है।'
अब सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति में मां अपने बच्चे को दूध पिला सकती है या नहीं। इस पर डॉ. मीरा पाठक ने कहा, ''दोनों तरह की माताओं के लिए फीडिंग के नियम अलग-अलग होते हैं। यदि महिला 'लो रिस्क' है, तो उसे सलाह दी जाती है कि वह अपने बच्चे को केवल अपना दूध ही पिलाए, जिसे 'एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग' कहा जाता है। उसे यह भी बताया जाता है कि वह फॉर्मूला मिल्क और मां का दूध एक साथ न दे, क्योंकि ऐसा करने से बच्चे की आंतें कमजोर हो सकती हैं और एचआईवी वायरस के शरीर में पहुंचने का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे बच्चों को एक सिरप दिया जाता है और छह हफ्ते बाद उनका एचआईवी टेस्ट होता है।''
उन्होंने आगे कहा, ''हाई रिस्क मांओं के लिए शुरुआत में फॉर्मूला मिल्क की सलाह दी जाती है, लेकिन कई बार यह दूध बच्चों में डायरिया जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है। ऐसे मामलों में डॉक्टर एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग की अनुमति दे देते हैं, लेकिन इसमें भी साफ हिदायत होती है कि मिक्स फीडिंग नहीं होनी चाहिए। यानी या तो बच्चा केवल मां का दूध पिएं या बिल्कुल फॉर्मूला मिल्क पर रहे। हाई रिस्क बच्चों को दो तरह के सिरप दिए जाते हैं और छह हफ्ते बाद उनका भी एचआईवी टेस्ट किया जाता है।''