क्या इमरान मसूद मूल रूप से कांग्रेसी नहीं, बल्कि सपाई हैं: उदयवीर सिंह?

सारांश
Key Takeaways
- इमरान मसूद कांग्रेसी नहीं, बल्कि सपाई हैं।
- सपा और कांग्रेस की लीडरशिप पर ध्यान देना चाहिए।
- राहुल गांधी का कार्यकाल प्रभावी रहा है।
- गठबंधन की मजबूती संवाद पर निर्भर करती है।
- अखिलेश यादव पार्टी के मुख्य नेता हैं।
लखनऊ, 3 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है। इस संदर्भ में समाजवादी पार्टी के नेता उदयवीर सिंह ने न्यूज एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत करते हुए कहा कि सपा और कांग्रेस के नेशनल लीडर ने बार-बार गठबंधन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। उन्होंने इमरान मसूद पर कहा कि लीडरशिप ही गठबंधन करती है, जबकि अन्य पार्टी के कार्यकर्ता और नेता अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। पार्टी के नेता कई बार उत्तेजना और चर्चा में बने रहने के लिए बोलते हैं, इसलिए उन्हें गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।
उदयवीर सिंह ने कहा कि हमें केवल यही देखना चाहिए कि कांग्रेस और सपा की लीडरशिप क्या कहती है। उन्होंने आगे कहा कि सपा और कांग्रेस की तरफ से बयान आएगा और उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, मुझे लगता है कि चीजें इसी भावना से आगे बढ़ेंगी। लीडरशिप बिठेगी और सीटों पर बात होगी।
उन्होंने कहा कि इमरान मसूद क्या कहते हैं, यह उनसे पूछिए। उनसे पूछिए कि वे राहुल गांधी से बात करके क्यों नहीं कहते हैं। इमरान मसूद मूल रूप से कांग्रेसी नहीं हैं, बल्कि वह सपाई हैं। इमरान मसूद की बात को उतना महत्व नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि लीडरशिप की बात को प्राथमिकता देनी चाहिए।
उदयवीर सिंह ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी का एक साल का कार्यकाल बहुत अच्छा रहा। विपक्ष ने बहुत मजबूती से मुद्दे उठाए। वास्तव में, सरकार का कार्यकाल खराब रहा। सरकार संसद में चर्चा से भागती रही और विपक्षी नेताओं के माइक बंद करवाती रही। उपसभापति की भूमिका लोकतंत्र को निम्न स्तर पर ले जाने वाली रही।
सपा नेता ने आगे कहा कि अगर अखिलेश यादव नेता विपक्ष होते तो क्या होता? इस सवाल के जवाब में उदयवीर सिंह ने कहा कि अखिलेश हमारे सबसे बड़े नेता हैं। हम चाहेंगे कि उन्हें सबसे बड़ी कुर्सी मिले, लेकिन सदन में नंबर गेम चलता है। जो बड़ी पार्टी उभर कर आएगी, उसके नेता विपक्षी दल होंगे। जब 2019 का लोकसभा चुनाव आया, तब भी यह बात हुई थी कि लीडरशिप कौन लेगा? दिल्ली में लीडरशिप के लिए मायावती को आगे लाया जा रहा था। इस बार भी जब हुआ तो अखिलेश यादव ने अपनी महत्वाकांक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कुर्सी के लिए हम धोखेबाजी नहीं करेंगे। नीतीश कुमार अलायंस से हट गए, लेकिन हम पूरी ताकत से गठबंधन में बने रहे।