क्या ईश्वर चंद्र विद्यासागर वास्तव में बंगाल पुनर्जागरण के युगपुरुष थे?

Click to start listening
क्या ईश्वर चंद्र विद्यासागर वास्तव में बंगाल पुनर्जागरण के युगपुरुष थे?

सारांश

ईश्वर चंद्र विद्यासागर, एक अद्वितीय समाज सुधारक, ने रूढ़ियों के खिलाफ आवाज उठाई और शिक्षा में क्रांति लाई। उनका योगदान न केवल विधवा पुनर्विवाह अधिनियम से जुड़ा है, बल्कि उन्होंने समाज में शिक्षण की नई दिशा भी दी। आइए उनके प्रेरणादायक जीवन के बारे में जानते हैं।

Key Takeaways

  • विद्यासागर का जीवन सुधारक के रूप में प्रेरणा देता है।
  • विधवा पुनर्विवाह अधिनियम का समर्थन उनके अद्वितीय योगदान में से एक है।
  • शिक्षा को आम जनता के लिए सुलभ बनाना उनका मिशन था।
  • उन्होंने समाज में रूढ़िवादिता के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
  • धार्मिक और सामाजिक सुधार में उनका योगदान अमूल्य है।

नई दिल्ली, 29 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। ईश्वर चंद्र विद्यासागर उन्नीसवीं सदी के भारत के एक प्रमुख समाज सुधारक, शिक्षाविद, लेखक और दार्शनिक थे, जिन्हें बंगाल पुनर्जागरण का एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गांव में 26 सितंबर 1820 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

उनके पिता ठाकुरदास बंद्योपाध्याय और माता भगवती देवी ने उन्हें शिक्षा और नैतिकता का महत्व सिखाया। गरीबी और कठिनाइयों के बावजूद, विद्यासागर की तेज बुद्धि और ज्ञान के प्रति समर्पण ने उन्हें कम उम्र में ही संस्कृत और दर्शन में दक्षता दिलाई, जिसके लिए कोलकाता के संस्कृत कॉलेज ने उन्हें ‘विद्यासागर’ (ज्ञान का सागर) का सम्मान प्रदान किया।

विद्यासागर का सबसे महत्वपूर्ण योगदान सामाजिक सुधार के क्षेत्र में रहा। उन्होंने उस समय की रूढ़ियों और कुरीतियों, जैसे विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबंध, बाल विवाह और बहुपत्नी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी दृढ़ता और तर्कों से प्रभावित होकर 1856 में विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित हुआ, जिसने विधवाओं को सामाजिक सम्मान और जीवन जीने का अधिकार दिलाया।

उन्होंने न केवल इस कानून के लिए जोरदार पैरवी की, बल्कि अपने बेटे का विवाह एक विधवा से करवा कर समाज के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया। उनकी यह पहल उस समय की रूढ़िवादी मानसिकता के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम था।

शिक्षा के क्षेत्र में विद्यासागर का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने बंगाली गद्य को सरल और आधुनिक रूप प्रदान किया, जिससे यह आम जनता के लिए सुलभ हो सका। उनकी पुस्तक ‘वर्ण परिचय’ ने बंगाली भाषा की शिक्षा को क्रांतिकारी बना दिया।

इसके अलावा, उन्होंने कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज सहित कई स्कूलों की स्थापना की और बालिका शिक्षा को बढ़ावा दिया। उन्होंने संस्कृत कॉलेज में प्राचार्य के रूप में कार्य करते हुए गैर-ब्राह्मण छात्रों के लिए शिक्षा के द्वार खोले, जो उस समय एक साहसिक कदम था।

विद्यासागर की करुणा और परोपकारिता उन्हें ‘दयासागर’ की उपाधि दिलाने वाली थी। एक बार रास्ते में एक बीमार मजदूर को देखकर उन्होंने उसे अपनी पीठ पर लादकर गांव तक पहुंचाया।

ऐसी अनेक घटनाएं उनकी मानवता को दर्शाती हैं। अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष उन्होंने झारखंड के जामताड़ा में संथाल आदिवासियों के बीच बिताए, जहां उन्होंने संथाल लड़कियों के लिए देश का पहला औपचारिक बालिका विद्यालय और एक मुफ्त होम्योपैथी क्लिनिक स्थापित किया। साहित्य के क्षेत्र में भी विद्यासागर ने अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने ‘वैताल पंचविंशति’, ‘शकुंतला’ और ‘सीतावनवास’ जैसे कालजयी ग्रंथों का अनुवाद और लेखन किया।

उनकी 52 रचनाओं में से 17 संस्कृत में और पांच अंग्रेजी में थीं। ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जीवन सादगी, साहस और समाज सेवा का प्रतीक है। ईश्वर चंद्र विद्यासागर 29 जुलाई 1981 को इस दुनिया को छोड़ अनंत में विलीन हो गए।

Point of View

बल्कि उन्होंने समाज की कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाई। हमें उनके योगदान को न केवल याद रखना चाहिए, बल्कि उनके विचारों को अपनाना भी चाहिए।
NationPress
29/07/2025

Frequently Asked Questions

ईश्वर चंद्र विद्यासागर का सबसे बड़ा योगदान क्या था?
उनका सबसे बड़ा योगदान विधवा पुनर्विवाह अधिनियम का समर्थन करना था, जिसने विधवाओं को सम्मान और अधिकार दिए।
विद्यासागर ने शिक्षा के क्षेत्र में क्या कार्य किए?
उन्होंने बंगाली गद्य को सरल बनाया और कई स्कूलों की स्थापना की, जिसमें बालिका शिक्षा को बढ़ावा दिया।
उनकी प्रमुख रचनाएं कौन-सी हैं?
उनकी प्रमुख रचनाओं में 'वैताल पंचविंशति', 'शकुंतला' और 'सीतावनवास' शामिल हैं।
विद्यासागर का जन्म कब और कहां हुआ?
उनका जन्म 26 सितंबर 1820 को पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गांव में हुआ था।
विद्यासागर का जीवन किस बात का प्रतीक है?
उनका जीवन सादगी, साहस और समाज सेवा का प्रतीक है।