क्या जमनालाल बजाज ने स्वदेशी से सेवाग्राम तक राष्ट्रहित में संपत्ति त्याग की मिसाल प्रस्तुत की?
सारांश
Key Takeaways
- जमनालाल बजाज ने स्वदेशी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने महिला सशक्तीकरण के लिए कई अभियान चलाए।
- ग्रामीण विकास के लिए अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ की स्थापना की।
- उन्होंने समाज सुधार के लिए हरिजन सेवक संघ में योगदान दिया।
- उनका जीवन ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर आधारित था।
नई दिल्ली, 3 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। जमनालाल बजाज का नाम भारत के प्रमुख उद्योगपतियों में शुमार है, वे स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी और समाजसेवी थे। महात्मा गांधी द्वारा उन्हें 'अपने पांचवें पुत्र' कहे जाने के पीछे उनकी महानता छिपी है। उन्होंने न केवल बजाज समूह की नींव रखी, बल्कि स्वदेशी आंदोलन, महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास और पशु कल्याण जैसे क्षेत्रों में अपनी संपत्ति का उपयोग राष्ट्रहित में किया।
जमनालाल बजाज का जन्म 4 नवंबर, 1889 को राजस्थान के सीकर जिले के काशी का बास गांव में हुआ। कनीराम और बिरदीबाई के घर जन्मे जमनालाल की बुद्धिमत्ता अद्वितीय थी। जब वे केवल 5 वर्ष के थे, तब उन्हें वर्धा के धनी सेठ बछराज बजाज ने गोद लिया।
सेठ बछराज, जो ब्रिटिश राज के दौरान एक सम्मानित व्यापारी थे, ने जमनालाल को व्यापार के गुण सिखाए।
17 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने कारोबार का जिम्मा संभाल लिया और अनेक कंपनियों की स्थापना की, जिनमें से कई आज बजाज समूह का आधार बनीं। आज बजाज समूह भारत का एक प्रमुख औद्योगिक साम्राज्य है, जो ऑटोमोबाइल से लेकर वित्तीय सेवाओं तक फैला हुआ है। जमनालाल ट्रस्टीशिप के सिद्धांत पर विश्वास रखते थे, अर्थात संपत्ति राष्ट्र की अमानत है।
1915 में महात्मा गांधी की भारत वापसी के बाद, जमनालाल का जीवन एक नए मोड़ पर आया। अहमदाबाद के सत्याग्रह आश्रम का दौरा करने पर, वे गांधीजी के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने कीमती वस्त्रों की होली जलाई, खादी का उपयोग किया और बच्चों को विनोबा भावे के सत्याग्रह आश्रम में पढ़ाया। स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका अविस्मरणीय रही। असहयोग आंदोलन (1920-22), नागपुर झंडा सत्याग्रह, साइमन कमीशन का बहिष्कार (1928), नमक सत्याग्रह (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में उनकी सक्रिय भागीदारी रही।
डांडी मार्च के दौरान गांधीजी की गिरफ्तारी के बाद, जमनालाल को दो वर्ष की सजा का सामना करना पड़ा। वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष बने और खादी बोर्ड के अध्यक्ष रहे। समाजसेवी के रूप में जमनालाल ने समाज सुधार पर जोर दिया। उन्होंने अखिल भारतीय ग्रामोद्योग संघ (1935) की स्थापना की, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का एक माध्यम बनी। महिला सशक्तीकरण के लिए, उन्होंने बाल-विवाह विरोधी अभियान चलाए और विधवाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया। दलित उत्थान के लिए उन्होंने हरिजन सेवक संघ में योगदान दिया। उन्होंने गौ-रक्षा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
उनका निधन 11 फरवरी 1942 को केवल 52 वर्ष की आयु में वर्धा में हुआ। उन्हें मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उन्होंने वर्धा में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना के लिए भूमि दान की, जहां गांधीजी निवास करते थे।