क्या झारखंड स्थापना दिवस पर रांची की सड़कों पर हजारों कलाकारों ने किया अद्भुत प्रदर्शन?
सारांश
Key Takeaways
- झारखंड स्थापना दिवस पर रैली का आयोजन हुआ।
- मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कलाकारों को सम्मानित किया।
- पारंपरिक नृत्य और संगीत का प्रदर्शन हुआ।
- जातरा संस्कृति और समुदाय का प्रतीक है।
- राज्य की समृद्ध लोकसंस्कृति का उत्सव मनाया गया।
रांची, 16 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड स्थापना दिवस के रजत वर्ष पर, राजधानी रांची ने रविवार को एक सांस्कृतिक उत्सव का अनुभव किया, जब शहर की प्रमुख सड़कों पर लोकधुनों, नृत्य और जनजातीय परंपराओं से भरा एक विशाल जातरा (शोभायात्रा) निकला। ढोल, नगाड़ा और मांदर की थाप पर झूमते हुए पांच हजार से अधिक कलाकारों ने झारखंड की समृद्ध लोकसंस्कृति का एक जीवंत प्रदर्शन किया, जिसने शहर का माहौल पूरी तरह से उत्सवी बना दिया।
जातरा झांकी शहर के विभिन्न मार्गों से होकर गुजरी, जहां पारंपरिक परिधानों में सजे कलाकारों ने नृत्य और संगीत की ऐसी छटा बिखेरी कि दर्शकों की भारी भीड़ मंत्रमुग्ध रही। कई स्थानों पर लोग सड़क किनारे खड़े होकर वीडियो बनाते और कलाकारों पर फूल बरसाते नजर आए।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अल्बर्ट एक्का चौक पर मंच से कलाकारों का स्वागत किया और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण के इस प्रयास की सराहना की। उन्होंने कलाकारों को पानी, गुड़ और चना वितरित किया और पारंपरिक ढोल-ढाक बजाकर उत्सव का हिस्सा बने। मुख्यमंत्री अपनी पत्नी विधायक कल्पना सोरेन के साथ कुछ दूर तक जातरा रैली में शामिल हुए और कलाकारों के साथ कदमताल कर लोगों का उत्साह बढ़ाया।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा, “जातरा सिर्फ यात्रा नहीं, यह संस्कृति, आस्था और समुदाय का चलायमान उत्सव है। नृत्य में झारखंड की मिट्टी बोलती है—कभी खुशी से, कभी संघर्ष से, तो कभी आशा से। ढोल-मांदर की धुन पर जब पैर थिरकते हैं, तब पूरी धरती उत्सव बन जाती है। झारखंडी नृत्य सिर्फ कला नहीं, यह प्रकृति और समुदाय के बीच संवाद है।”
इस मौके पर कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता मंत्री शिल्पी नेहा तिर्की ने कहा, “झारखंड की मिट्टी का हर कण हमारे पुरखों के संघर्ष और बलिदान की स्मृति लिए हुए है। अलग राज्य का सपना साकार होना हम सबके लिए गर्व की बात है और हर वर्ष स्थापना दिवस इसी उत्साह के साथ मनाना हमारी प्रतिबद्धता है।”