क्या कल्याण सिंह ने मंडल-मंदिर के बीच सामाजिक समीकरण साधकर भाजपा को नया जनाधार दिया?

सारांश
Key Takeaways
- कल्याण सिंह का योगदान राम जन्मभूमि आंदोलन में महत्वपूर्ण रहा।
- उन्होंने मंडल और मंदिर के बीच संतुलन साधा।
- सत्ता से अधिक उन्होंने विचारों और सिद्धांतों को महत्व दिया।
- उनकी नीतियों ने भाजपा का जनाधार बढ़ाने में मदद की।
- कल्याण सिंह की राजनीति ने सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी।
लखनऊ, 20 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय राजनीति में कल्याण सिंह को राम जन्मभूमि आंदोलन का नायक माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने सत्ता की तुलना में विचार और संकल्पों को अधिक महत्व दिया। उन्होंने मंडल-मंदिर के बीच सामाजिक समीकरणों को गढ़कर भाजपा को एक नया जनाधार प्रदान किया।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, कल्याण सिंह ऐसे नेताओं में से एक थे जिन्होंने विचार और संकल्प को कुर्सी से ऊपर रखा। राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका ने राजनीति को एक नई दिशा दी। जब उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी, तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के त्याग दिया। कारसेवकों पर गोली न चलाने का आदेश उन्होंने स्वीकार किया और जेल जाने के लिए तत्पर हो गए।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक मुकेश अलख के अनुसार, "कल्याण सिंह जैसे नेता दुर्लभ होते हैं। उन्होंने सत्ता से अधिक न्याय को प्राथमिकता दी। अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में उनके द्वारा लिए गए निर्णय एक मिसाल प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने शिक्षा में नकल खत्म करने की दिशा में ठोस कदम उठाए। राम जन्मभूमि आंदोलन में उनका योगदान ऐतिहासिक रहा। उनके शासन में कड़ी व्यवस्था लागू थी। उनकी भतीजी का चिकित्सा में प्रवेश होना था और उन्होंने उस समय दो सीटों के कोटे को समाप्त कर दिया।"
हालांकि उनके परिवार को यह निर्णय पसंद नहीं आया, फिर भी वे अपने फैसले पर अडिग रहे। अलख ने बताया कि वे हमेशा गरीबों को न्याय दिलाने के लिए तत्पर रहते थे। राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी गहरी भूमिका थी। अयोध्या के संत आज भी याद करते हैं कि जब वे मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हेलीकॉप्टर से आने का प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा कि 'अयोध्या की धरती पर सड़क मार्ग से आना ही मेरा सौभाग्य है।' यह केवल यात्रा का तरीका नहीं, बल्कि जनता से उनके गहरे जुड़ाव का प्रतीक था।
सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी पीके मिश्र का कहना है कि सभी जानते हैं कि 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिरने के बाद उन्होंने तुरंत इस्तीफा दे दिया। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि गोली न चलाने का आदेश उन्होंने ही दिया। उस समय जब अन्य नेता अधिकारियों पर दोषारोपण करते थे, कल्याण सिंह ने स्वयं जवाबदेही स्वीकार की और तिहाड़ जेल जाने के लिए तैयार हुए।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, उनकी राजनीति का दूसरा पहलू मंडल और मंदिर के बीच संतुलन साधने का था। मंडल फैसले के बाद राजनीति जातीय ध्रुवीकरण में बंटी, तब उन्होंने पिछड़े और दलितों को भाजपा से जोड़कर सोशल इंजीनियरिंग का नया अध्याय लिखा। इससे भाजपा का जनाधार बढ़ा और वे हिंदुत्व के साथ सामाजिक समीकरणों के शिल्पकार बने।
वरिष्ठ पत्रकार पवन पाण्डेय का कहना है कि जब भी उनके शासन काल के बारे में चर्चा होती है तो यह बहुत आश्चर्यजनक लगता है। मैं तो अयोध्या का निवासी हूं। सोचिए, एक व्यक्ति जिसने आठ बार विधायक, तीन बार मुख्यमंत्री, लोकसभा सांसद और राज्यपाल के रूप में कार्य किया, उसका जीवन निष्कलंकित बीता। कल्याण सिंह की विरासत केवल पदों तक सीमित नहीं रही। उनका सड़क से जुड़ाव, सत्ता त्यागने का साहस, अदालत में जवाबदेही और सामाजिक संतुलन की कला ने उन्हें भारतीय राजनीति का अद्वितीय अध्याय बना दिया।