क्या चंडीगढ़ में कारगिल विजय दिवस पर सैनिकों के शौर्य को याद किया गया?

सारांश
Key Takeaways
- कारगिल विजय दिवस 1999 में भारतीय सेना की विजय का प्रतीक है।
- सैन्य वीरता और बलिदान को युवाओं में फैलाना आवश्यक है।
- कार्यक्रम में रिटायर्ड सैनिकों और शहीदों के परिवारों ने अपनी भावनाएं साझा की।
- शहीदों की याद में सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
- भारतीय सेना आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ संकल्प के साथ खड़ी है।
चंडीगढ़, 26 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। हर वर्ष 26 जुलाई को भारत कारगिल विजय दिवस का आयोजन करता है, जो 1999 में कारगिल युद्ध में भारतीय सेना की विजय और सैनिकों के बलिदान को स्मरण करने का दिन है। इस साल 26वें कारगिल विजय दिवस के उपलक्ष्य में चंडीगढ़ में आयोजित कार्यक्रम में रिटायर्ड सैनिकों और शहीदों के परिवारों ने अपनी भावनाएं साझा की।
इस कार्यक्रम में रिटायर्ड ब्रिगेडियर एस वी भास्कर, शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के भाई विशाल बत्रा, शहीद सेवा दल फाउंडेशन के निदेशक सावन सिंह रोहिल्ला, और रिटायर्ड कैप्टन रामचंद्र यादव शामिल हुए।
रिटायर्ड ब्रिगेडियर एस वी भास्कर ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि कारगिल युद्ध सहित भारत के सभी युद्धों की गाथाएं स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल होना आवश्यक है। 1947-48 के कश्मीर युद्ध, 1962 के भारत-चीन युद्ध, 1965 और 1971 के युद्धों से देश ने बहुत कुछ सीखा है। इन युद्धों में सैनिकों की वीरता और बलिदान को युवाओं तक पहुंचाना जरूरी है, ताकि उनमें देशप्रेम की भावना जाग सके।
उन्होंने कहा कि भले ही बच्चे सेना में भर्ती हों या न हों, लेकिन वे देश के जिम्मेदार नागरिक बनें। उन्होंने अपनी यूनिट के उन शहीदों को याद किया, जिनके बलिदान के कारण आज हम सिर उठाकर जी सकते हैं। उन्होंने कारगिल विजय का जश्न मनाने के साथ-साथ शहीदों को श्रद्धांजलि देने के महत्व पर जोर दिया।
ऑपरेशन सिंदूर के बारे में उन्होंने कहा कि यह तब तक जारी रहेगा जब तक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई खत्म नहीं हो जाती। भारतीय सेना की तैयारियां और आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ संकल्प कभी कम नहीं होगा।
शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा के भाई विशाल बत्रा ने कहा कि वे 26 जुलाई को उसी गर्व के साथ देखते हैं, जैसे 26 साल पहले भारतीय सैनिकों ने कारगिल, द्रास और मश्कोह घाटी की ऊंची चोटियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों को हराया था। उन्होंने सभी शहीद सैनिकों और उनके परिवारों को नमन किया।
विशाल ने कहा कि कैप्टन विक्रम बत्रा को याद करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं है। 24 साल की उम्र में विक्रम ने जो जज्बा और वीरता दिखाई, वह हर भारतीय के दिल में बसा है। उनकी बहादुरी और “ये दिल मांगे मोर” का नारा आज भी युवाओं को प्रेरित करता है।
शहीद सेवा दल फाउंडेशन के निदेशक सावन सिंह रोहिल्ला ने बताया कि उनकी संस्था हर साल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के सम्मान में कारगिल में गंगाजल चढ़ाती है। इस साल भी उन्होंने उस परंपरा का पालन किया।
उन्होंने 1962 के युद्ध के जीवित सैनिक और परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह भाटी के रेडियो ऑपरेटर का उल्लेख किया, जो 87 साल की उम्र में रेजांगला पराक्रम यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं।
रिटायर्ड कैप्टन रामचंद्र यादव ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में रेजांगला की लड़ाई को याद किया, जिसमें वे मेजर शैतान सिंह के साथ रेडियो ऑपरेटर के रूप में शामिल थे। उन्होंने बताया कि 124 भारतीय सैनिकों ने 3,000 चीनी सैनिकों का मुकाबला किया। चीनी सेना के हथियार और संसाधन बेहतर थे, फिर भी भारतीय सैनिकों ने आखिरी सांस तक अपनी सीमा की रक्षा की।