क्या कार्तिक पूर्णिमा की रात धरती पर देवताओं ने दीपदान किया था?
सारांश
Key Takeaways
- कार्तिक पूर्णिमा को 'देव दीपावली' कहते हैं।
- भगवान शिव ने इस दिन त्रिपुरासुर का वध किया।
- देवता इस दिन गंगा स्नान करते हैं।
- यह पर्व एकता और भाईचारे का प्रतीक है।
- वाराणसी में इस पर्व को विशेष तरीके से मनाया जाता है।
नई दिल्ली, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवता स्वयं धरती पर आकर गंगा स्नान करके दीपकों को जलाते हैं और देव दीपावली का पर्व मनाते हैं।
एक प्राचीन कथा के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था। इसी कारण से इस दिन देवताओं ने प्रसन्न होकर दीपावली का उत्सव मनाया। तब से कार्तिक पूर्णिमा को 'देव दीपावली' कहा जाने लगा क्योंकि सभी देवता पृथ्वी पर दीपावली मनाने के लिए आए थे।
देव दीपावली के पीछे एक कथा प्रचलित है, जिसमें महाभारत के कर्णपर्व में एक कहानी है। इस अनुसार, त्रिपुरासुर दैत्यराज तारकासुर के तीन पुत्र थे: तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। तीनों ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए कठिन तपस्या की और ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा। वरदान के अनुसार उनकी मृत्यु तभी हो सकती थी जब तीनों नगर एक सीध में आएं और कोई एक ही बाण से उन्हें मार दे। वरदान के बाद त्रिपुरासुर ने स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल लोक में आतंक मचाना शुरू कर दिया।
उनके अत्याचार से परेशान होकर ऋषि-मुनि और देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने वध करने का निर्णय लिया। शिव ने एक विशेष दिव्य रथ बनाया, जिसमें उन्होंने पृथ्वी को रथ का आधार, सूर्य और चंद्रमा को पहिए, मेरु पर्वत को धनुष और वासुकी नाग को धनुष की डोर बनाया। भगवान विष्णु स्वयं बाण बने। शिव उस रथ पर सवार हुए।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन अभिजित नक्षत्र में तीनों पुरियां एक पंक्ति में आ गईं। शिव ने एक ही बाण से तीनों को भेद दिया और त्रिपुरासुर को भस्म कर दिया। इस विजय के बाद शिव को त्रिपुरारी कहा गया। वध के बाद देवताओं ने काशी में दीप दान कर उत्सव मनाया।
मान्यता है कि तभी से कार्तिक पूर्णिमा को 'देव दीपावली' कहा जाने लगा। इस दिन वाराणसी में देव दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है।