क्या खांसी या दमा की समस्या से परेशानी है? इस आयुर्वेदिक औषधि से पाएँ राहत
सारांश
Key Takeaways
- कण्टकारी एक प्रभावी जड़ी-बूटी है।
- यह खांसी और दमा में राहत दिलाती है।
- यह फेफड़ों की सफाई में सहायक है।
- गर्भवती महिलाओं को चिकित्सक की सलाह पर लेना चाहिए।
- इसके साथ अन्य जड़ी-बूटियाँ लेना फायदेमंद होता है।
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। आज के आधुनिक जीवन में बढ़ते प्रदूषण के कारण खांसी और दमा जैसी सांस संबंधी समस्याएं आम हो गई हैं। ऐसे में प्राकृतिक औषधियों का उपयोग करना काफी लाभदायक साबित हो सकता है। इनमें से एक प्रमुख जड़ी-बूटी है कण्टकारी, जिसे स्थानीय भाषा में भटकटैया या कंटेरी भी कहा जाता है।
यह एक कांटेदार पौधा है, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता है।
आयुर्वेद में कण्टकारी को कासहर औषधि के रूप में माना गया है, जो खांसी को नियंत्रित करती है। यह दशमूल औषधियों का हिस्सा है और फेफड़ों की सफाई, कफ को पतला करने और श्वसन तंत्र को मजबूत करने में मदद करती है।
चरक संहिता में भी कण्टकारी का उल्लेख है। यह हल्की, कड़वी और तीखी होती है तथा कफ-वात दोष को संतुलित करती है। इसका प्रयोग खांसी, दमा, गले की खराश, सर्दी-जुकाम और ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याओं में किया जाता है। यह बलगम को पतला करके बाहर निकालने में सहायक होती है, जिससे सांस लेना आसान होता है। इसके फलों का काढ़ा गले की सूजन और जलन को कम करता है।
आयुर्वेदिक नुस्खों में इसका उपयोग काढ़ा, अर्क या चूर्ण के रूप में किया जाता है। यदि आप पुरानी सूखी खांसी से परेशान हैं, तो कण्टकारी चूर्ण और शहद का मिश्रण सुबह-शाम लेना फायदेमंद रहता है।
अतिरिक्त रूप से, आयुर्वेदिक औषधि दुकानों पर मिलने वाला कण्टकारी अर्क या सिरप भी नियमित सेवन से श्वसन तंत्र को मजबूत करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, आधुनिक अध्ययन दर्शाते हैं कि कण्टकारी में अस्थमारोधी, कफ निस्सारक, सूजनरोधी और रोगाणुरोधी गुण मौजूद होते हैं। यह फेफड़ों की सूजन को कम करता है और सांस की नलियों को खोलता है।
अगर आप कण्टकारी के साथ वासा, तुलसी, यष्टिमधु और पिप्पली जैसी जड़ी-बूटियाँ भी लेते हैं, तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
हालांकि, गर्भवती महिलाओं को इसे केवल वैद्य की सलाह पर लेना चाहिए और बच्चों को आधी मात्रा में देना चाहिए। ज्यादा मात्रा में सेवन से जलन या पित्त बढ़ सकता है।