क्या आपको याद है 1993 की वो भयानक सुबह जब किल्लारी में बिछ गईं हजारों लाशें?

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क्या आपको याद है 1993 की वो भयानक सुबह जब किल्लारी में बिछ गईं हजारों लाशें?

सारांश

30 सितंबर 1993 को किल्लारी गांव में आए भयानक भूकंप ने हजारों लोगों की जान ले ली। यह घटना न केवल एक प्राकृतिक आपदा थी, बल्कि महाराष्ट्र की एक संपूर्ण संस्कृति के लिए एक गहरा दुःख लेकर आई। आइए, जानते हैं उस दिन की भयावहता और इसके पीछे की कहानी।

Key Takeaways

  • 30 सितंबर 1993 को किल्लारी में भूकंप आया।
  • इस भूकंप में लगभग आठ हजार लोगों की जान गई।
  • भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.4 थी।
  • इस आपदा ने पूरे महाराष्ट्र को प्रभावित किया।
  • भूकंप ने लोगों के घर और ज़िंदगी को तबाह कर दिया।

नई दिल्ली, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। 30 सितंबर 1993 को सुबह 3:56 बजे, जब दुनिया गहरी नींद में थी, तब कई लोगों को यह एहसास नहीं था कि वे उस सुबह का सूरज नहीं देख पाएंगे। अचानक धरती कांप उठीमहाराष्ट्र के लातूर जिले के किल्लारी गांव और आस-पास के क्षेत्रों में रिक्टर पैमाने पर 6.4 तीव्रता का भूकंप आया।

इसका केंद्र किल्लारी गांव में जमीन से लगभग 10 किलोमीटर की गहराई पर था। एक के बाद एक तीन झटकों ने सब कुछ चंद पलों में ही तहस-नहस कर दिया। पक्के और कच्चे घर मिट्टी के ढेर में बदल गए। सड़कें फट गईं, पेड़ उखड़ गए और चारों ओर चीख-पुकार मच गई। हजारों लोग मलबे में दब गए और पूरा गांव मातम में डूब गया।

यह दिन इतिहास के पन्नों पर काले अक्षरों में दर्ज है। हर साल 30 सितंबर को उस भयावह घटना के जख्म फिर से हरे हो जाते हैं। यह अनंत चतुर्दशी का दिन था, जब गणपति विसर्जन की धूम पूरे महाराष्ट्र में थी। हर तरफ ढोल-नगाड़ों की गूंज, भक्तों की भक्ति और बप्पा को विदाई देने का उत्साह था।

किल्लारी और आस-पास के गांवों में लोग देर रात तक विसर्जन के उत्सव में मग्न रहे। रात गहराने के बाद थके हुए लोग अपने घरों में लौटे और फिर पूरा गांव गहरी नींद में सो गया, लेकिन किसी को नहीं पता था कि यह शांति महज कुछ घंटों की मेहमान थी।

यह भूकंप किल्लारी तक सीमित नहीं रहा। लातूर और उस्मानाबाद (अब धाराशिव) जिलों के 52 गांव इसकी चपेट में आए। लातूर का औसा और उस्मानाबाद का उमरगा तालुका इस प्राकृतिक आपदा से सबसे अधिक प्रभावित हुए।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस आपदा में लगभग आठ हजार लोगों की जान गई, जबकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक थी, क्योंकि कई शव मलबे में दबे रह गए। 16 हजार से अधिक लोग घायल हुए और लगभग उतने ही जानवर भी मारे गए। हजारों घर पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गए।

किल्लारी और आसपास के गांवों का तो जैसे वजूद ही मिट गया। सुबह की पहली किरण के साथ तबाही का मंजर सबके सामने था।

लोग अपने अपनों को मलबे में ढूंढ रहे थे, लेकिन जवाब में सिर्फ सन्नाटा और आंखों के सामने मलबे के ढेर थे। इस दुख के पहाड़ ने पूरे महाराष्ट्र को गम में डुबो दिया। भूकंप ने न केवल लोगों के घर छीने, बल्कि उनके अपनों को, यादों को और उनकी जिंदगी की रौनक को भी छीन लिया।

भूकंप के समय जो बच्चे थे, वे अब जवान हो चुके हैं। उन युवाओं ने अपने अस्तित्व की लड़ाई नए सिरे से शुरू कर दी है, लेकिन किल्लारी के लोग आज भी उस रात को याद कर सिहर उठते हैं, जब उनकी दुनिया पलभर में उजड़ गई थी।

Point of View

NationPress
29/09/2025

Frequently Asked Questions

किल्लारी भूकंप कब आया था?
किल्लारी भूकंप 30 सितंबर 1993 को सुबह 3:56 बजे आया था।
भूकंप की तीव्रता क्या थी?
इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.4 थी।
इस आपदा में कितने लोग प्रभावित हुए?
इस आपदा में लगभग आठ हजार लोगों की जान गई और 16 हजार से अधिक लोग घायल हुए।
किल्लारी गांव का क्या हाल हुआ था?
किल्लारी गांव और आसपास के क्षेत्रों में तबाही का मंजर था, जहां लोग मलबे में दब गए थे।
इस घटना का क्या महत्व है?
यह घटना हमें प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जागरूक रहने और एकजुट होकर संकट का सामना करने की आवश्यकता को दर्शाती है।