क्या कुक्के सुब्रमण्या मंदिर में भगवान कार्तिकेय नागों के रक्षक के रूप में विराजमान हैं?
सारांश
Key Takeaways
- कुक्के सुब्रमण्या मंदिर का धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक धरोहर।
- भगवान कार्तिकेय का वासुकी नाग के साथ संबंध।
- प्रसाद में चींटी के टीले की मिट्टी का महत्व।
- कुमारधारा नदी के औषधीय गुण।
- नाग पूजा की प्राचीन परंपरा।
नई दिल्ली, 26 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदू धर्म में 33 कोटि देवी-देवताओं की पूजा का महत्व है, और उनके वाहनों को भी उतनी ही श्रद्धा से पूजा जाता है। क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव के प्रिय वासुकी नाग और भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की दुश्मनी को समाप्त करने के लिए भगवान शिव के आदेश पर कार्तिकेय ने उन्हें अपने पास स्थान दिया था? आज भी वासुकी नाग भगवान कार्तिकेय के चरणों में शरण लिए हुए हैं।
कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले में स्थित कुक्के सुब्रमण्या मंदिर इस कथा को जीवंत करता है। यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान कार्तिकेय की एक विशाल प्रतिमा है, और माना जाता है कि उनके चरणों में वासुकी नाग और अन्य सर्प प्रजातियाँ आज भी मौजूद हैं। मंदिर के प्रांगण में चांदी का एक स्तंभ स्थापित है, जिस पर गरुड़ की प्रतिमा है, जो सर्पों की नकारात्मकता को कम करने के लिए जानी जाती है।
यह स्थान भगवान परशुराम द्वारा बताए गए सात मोक्ष स्थलों में से एक माना जाता है। यहाँ प्राचीन काल से नाग पूजा की परंपरा रही है, और वासुकी सुब्रमण्यम (वासुकी) के आशीर्वाद से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में आकर पूजा करने से संतान भाग्य, त्वचा संबंधी विकारों का उपचार और नागदोष (सर्प का श्राप) से मुक्ति मिलती है। इस स्थान को गुप्त क्षेत्र भी कहा जाता है।
मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहाँ भक्तों को प्रसाद स्वरूप चींटी के टीले की मिट्टी मिलती है, जिसे पुट्टा मन्नू कहा जाता है। चंपा षष्ठी महोत्सव के अवसर पर विशेष रूप से इस मिट्टी का प्रसाद दिया जाता है, और मंदिर में विराजमान देवी-देवताओं को हल्दी और चंदन का लेप लगाकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है। यहाँ पके हुए चावल, गुड़ और केले का भोग लगाने की परंपरा भी है।
मंदिर के समीप कुमारधारा नदी बहती है, जिसका नाम भगवान कार्तिकेय के नाम पर रखा गया है। यह नदी औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है। भक्त मंदिर में दर्शन के उपरांत इस नदी में स्नान करना नहीं भूलते हैं। मान्यता है कि इस नदी में स्नान करने से त्वचा संबंधी विकार ठीक हो जाते हैं।