क्या कुटुंबा में कांग्रेस का दबदबा बना रहेगा? एनडीए की नई रणनीति क्या होगी?

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क्या कुटुंबा में कांग्रेस का दबदबा बना रहेगा? एनडीए की नई रणनीति क्या होगी?

सारांश

कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र बिहार की ग्रामीण राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहाँ की सामाजिक न्याय की मांगें और राजेश कुमार की राजनीतिक उपलब्धियां इसे और भी दिलचस्प बनाती हैं। एनडीए के लिए अब एक नई रणनीति अपनाना आवश्यक है। क्या यह संभव होगा?

Key Takeaways

  • कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र बिहार की दलित-राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्र है।
  • यह क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
  • राजेश कुमार की जीत ने कांग्रेस का गढ़ स्थापित किया है।
  • एनडीए को नई रणनीति बनाने की जरूरत है।
  • खामोश मतदाता समूह चुनावी रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पटना, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। मगध क्षेत्र के औरंगाबाद जिले में स्थित कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र सिर्फ एक राजनीतिक इकाई नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण बिहार की चुनौतियों, सामाजिक न्याय की मांगों और एक प्रभावशाली नेता के उदय की कहानी है। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, जिसे बिहार की दलित-राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।

यह निर्वाचन क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण है, जहां शहरी जनसंख्या नगण्य है। यहां के मुद्दे भी बेहद जमीनी हैं। कुटुंबा की राजनीति का केंद्र बिंदु बुनियादी विकास, ग्रामीण सड़कों, पानी, बिजली और स्वास्थ्य-शिक्षा की बदहाल स्थिति है।

यह सीट आरक्षित होने के कारण, यहां अनुसूचित जातियों की संख्या लगभग 29.2 प्रतिशत है। सामाजिक न्याय, आरक्षण का प्रभाव और दलित समुदाय की भागीदारी चुनावी बहस का मुख्य केंद्र हैं। मुस्लिम जनसंख्या भी लगभग 7.8 प्रतिशत है, जो चुनावी समीकरणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

2020 का मतदान प्रतिशत एक पहेली है, क्योंकि कुल 2,66,974 पंजीकृत मतदाताओं में से सिर्फ 52.06 प्रतिशत ने मतदान किया। यानी लगभग 48 प्रतिशत मतदाता मतदान में शामिल नहीं हुए। यह खामोश मतदाता समूह ही वह फैक्टर है, जिस पर भविष्य की रणनीति निर्भर करेगी।

कुटुंबा की राजनीति का टर्निंग पॉइंट कांग्रेस के राजेश कुमार की लगातार दो चुनावों में जीत है। पहले चुनाव में, 2010 में, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के ललन राम ने जीत हासिल की थी, जबकि राजेश कुमार तीसरे स्थान पर रहे थे। लेकिन 2015 में, जब यह सीट राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के तहत कांग्रेस को मिली, तो राजेश कुमार ने जोरदार वापसी की।

उन्होंने 2015 में भारी अंतर से जीत हासिल की और 2020 में अपनी जीत और मजबूत की। उन्हें 50,822 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के श्रवण भुइयां को 34,169 वोट मिले। जीत का अंतर 16,653 वोटों का था।

राजेश कुमार की यह लगातार दूसरी जीत थी, जिसने कुटुंबा में कांग्रेस का गढ़ स्थापित किया। उनकी बढ़ती राजनीतिक साख को देखते हुए, उन्हें बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।

एनडीए को अब नई रणनीति बनाने पर मजबूर होना पड़ा है, क्योंकि लगातार दो हार ने उन्हें चुनौती दी है। अब उनकी सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे राजेश कुमार के प्रभाव को कैसे कम करें और 2020 में मतदान न करने वाले 48 प्रतिशत खामोश मतदाताओं को मतदान केंद्रों पर कैसे लाएं।

Point of View

खामोश मतदाता समूह के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी होगा।

NationPress
30/10/2025

Frequently Asked Questions

कुटुंबा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में कौन प्रमुख हैं?
कांग्रेस के राजेश कुमार इस क्षेत्र में प्रमुख नेता हैं।
कुटुंबा सीट का मतदान प्रतिशत क्या है?
2020 में मतदान प्रतिशत 52.06 प्रतिशत रहा।