क्या बिहार चुनाव 2025 में रोसड़ा में भाजपा की पकड़ मजबूत रहेगी, महागठबंधन के लिए क्या हैं चुनौतियाँ?

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क्या बिहार चुनाव 2025 में रोसड़ा में भाजपा की पकड़ मजबूत रहेगी, महागठबंधन के लिए क्या हैं चुनौतियाँ?

सारांश

क्या बिहार चुनाव 2025 में रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की पकड़ मजबूत रहेगी? महागठबंधन को क्या चुनौतियाँ मिलेंगी? जानिए इस सीट के चुनावी इतिहास और सामाजिक समीकरणों के बारे में।

Key Takeaways

  • रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण है।
  • भाजपा ने पिछले एक दशक में अपनी स्थिति मजबूत की है।
  • 2020 में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की।
  • महागठबंधन को दलित वोटों का समर्थन पुनः प्राप्त करना होगा।
  • रोसड़ा का चुनावी इतिहास वामपंथ और दक्षिणपंथ के बीच की लड़ाई को दर्शाता है।

पटना, 4 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार की राजनीति में समस्तीपुर जिले का रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र (एससी-सुरक्षित) एक प्रमुख स्थान रखता है। यह सीट चुनाव परिणामों के साथ-साथ अपने गहरे राजनीतिक इतिहास और सामाजिक समीकरणों के कारण भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। दशकों तक यह सीट वामपंथी (सीपीएम) विचारधारा का गढ़ रही, लेकिन पिछले एक दशक में यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी स्थिति मजबूत की है।

2020 का विधानसभा चुनाव यहां की राजनीतिक दिशा का एक महत्वपूर्ण मोड़ बना, जब भाजपा उम्मीदवार ने ऐतिहासिक जीत हासिल की।

रोसड़ा विधानसभा चुनाव 2020 में एकतरफा मुकाबला देखने को मिला। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के तहत चुनाव लड़ रहे भाजपा के उम्मीदवार वीरेंद्र पासवान ने कांग्रेस के उम्मीदवार नागेंद्र कुमार पासवान विकल को 35,744 वोटों के अंतर से पराजित किया।

35,744 वोटों का यह बड़ा अंतर रोसड़ा की चुनावी राजनीति में भाजपा की ताकत को दर्शाता है। वीरेंद्र पासवान ने न केवल जीत दर्ज की, बल्कि 47.93 प्रतिशत वोट शेयर के साथ यह साबित किया कि इस सुरक्षित सीट पर मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा उनके समर्थन में मजबूती से एकजुट हुआ।

कांग्रेस, महागठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद केवल 28.27 प्रतिशत वोटों पर सीमित रह गई, जबकि एलजेपी के कृष्ण राज ने भी 22,995 वोट (12.64 प्रतिशत) हासिल कर मुकाबले को और जटिल बना दिया।

रोसड़ा का चुनावी इतिहास बेहद दिलचस्प और उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। 1977 से लेकर अब तक, इस सीट पर भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) दोनों ने चार-चार बार जीत दर्ज की है, जो यहां की जनता के वैचारिक ध्रुवीकरण को दर्शाता है। यह आंकड़ा बताता है कि रोसड़ा कभी वामपंथ की लालिमा में रंगा था, लेकिन अब पूरी तरह से दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रभाव में है।

2020 में भाजपा के उम्मीदवार वीरेंद्र पासवान ने यहां से जीत हासिल की। इससे पहले 2015 में कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ. अशोक कुमार ने इस सीट को अपने नाम किया था। 2010 में भाजपा की मंजू हजारी ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी।

2015 के परिणाम पर गौर करने पर कांग्रेस के डॉ. अशोक कुमार ने 85,506 वोट पाकर 34,361 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। यह जीत 2020 के परिणाम के बिल्कुल विपरीत थी, जो दर्शाता है कि रोसड़ा का मतदाता किसी एक पार्टी के प्रति स्थायी रूप से वफादार नहीं है, बल्कि वह गठबंधन की हवा और उम्मीदवार की स्थानीय अपील के आधार पर अपना निर्णय बदलता है।

इससे पहले 2010 में, भाजपा की मंजू हजारी ने 12,119 वोटों के करीबी अंतर से जीत दर्ज की थी, जो इस क्षेत्र में भाजपा के उदय का प्रारंभिक संकेत था।

रोसड़ा एक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है, जिसका अर्थ है कि यहां दलित समुदायों, विशेषकर पासवान और रविदास (यानी रविदास) जैसे समुदायों की राजनीति निर्णायक भूमिका निभाती है। 2020 में दोनों प्रमुख उम्मीदवारों का पासवान समुदाय से होना, इस समुदाय के राजनीतिक महत्व को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।

यह सीट दलित अस्मिता, आरक्षण और स्थानीय विकास के मुद्दों पर केंद्रित रहती है। यहां की राजनीति में महागठबंधन (राजद-कांग्रेस) का पारंपरिक दलित-अल्पसंख्यक आधार है, जिसे भाजपा ने केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के जरिए इस सीट पर पैठ बनाकर चुनौती दी है।

रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र वामपंथी इतिहास और वर्तमान भगवा प्रभाव के बीच एक पुल का काम करता है। यह सीट एक ऐसा राजनीतिक अखाड़ा है, जहां वामपंथ ने अपनी जड़ें खोई हैं और भाजपा ने उन्हें मजबूती से पकड़ लिया है।

कांग्रेस और राजद के महागठबंधन के लिए इस चुनाव में रोसड़ा में वापसी एक बड़ी चुनौती होगी। उन्हें न केवल भाजपा की मजबूत पकड़ को तोड़ना होगा, बल्कि दलित वोटों के बिखराव को भी रोकना होगा। रोसड़ा की राजनीति का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या महागठबंधन दलित मतदाताओं के बीच अपनी विश्वसनीयता दोबारा स्थापित कर पाता है या फिर वीरेंद्र पासवान के रूप में स्थापित भाजपा का नेतृत्व अपनी प्रचंड जीत की गति को बनाए रखता है।

Point of View

यह स्पष्ट है कि बिहार की चुनावी राजनीति में रोसड़ा क्षेत्र का महत्व अत्यधिक है। यहां के मतदाता एक स्थायी विचारधारा का पालन नहीं करते हैं, बल्कि स्थानीय मुद्दों और उम्मीदवारों की छवि के आधार पर अपने निर्णय लेते हैं। इस दृष्टिकोण से, महागठबंधन को अपनी विश्वसनीयता साबित करने की आवश्यकता है।
NationPress
04/10/2025

Frequently Asked Questions

रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास क्या है?
रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास वामपंथी विचारधारा का गढ़ रहा है, लेकिन पिछले एक दशक में भाजपा ने यहां अपनी स्थिति मजबूत की है।
भाजपा ने 2020 में कितने वोटों से जीत हासिल की थी?
भाजपा के उम्मीदवार वीरेंद्र पासवान ने 2020 में 35,744 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी।
क्या महागठबंधन को रोसड़ा में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा?
महागठबंधन के लिए रोसड़ा में वापसी करना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि उन्हें भाजपा की मजबूत पकड़ को तोड़ना होगा।