क्या नर्वस सिस्टम 24/7 इनपुट के लिए नहीं बना? डिजिटल सनसेट भी जरूरी है!

सारांश
Key Takeaways
- डिजिटल सनसेट से नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- सोने से पहले स्क्रीन से दूरी बनाना मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है।
- बच्चों के लिए यह आदत आवश्यक है।
- शांत सोने के अनुभव के लिए यह उपाय सही है।
- अपनी मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए इसे अपनाएं।
नई दिल्ली, 8 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। नर्वस सिस्टम लगातार 24/7 इनपुट के लिए नहीं बना है, थोड़ी मानसिक और शारीरिक शांति भी आवश्यक है। सबसे सहज और सरल उपचार क्या हो सकता है? इसका उत्तर आपके पास है। थोड़ी देर का स्विच ऑफ फायदेमंद साबित हो सकता है। डिजिटल सनसेट एक ब्रह्मास्त्र की तरह कार्य कर सकता है।
आज के युग में मोबाइल, लैपटॉप और टीवी हमारी दैनिक दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। हम सुबह उठते ही स्क्रीन पर ध्यान लगाते हैं और रात को सोने से पहले भी इन्हीं से जुड़े रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी विचार किया है कि लगातार इन उपकरणों से जुड़े रहना आपकी नींद और मानसिक शांति को कैसे प्रभावित कर रहा है?
इन्हीं चिंताओं के बीच एक नई आदत है—डिजिटल सनसेट, अर्थात दिन ढलने के बाद, विशेषकर सोने से एक से दो घंटे पहले, डिजिटल उपकरणों से पूरी तरह से दूरी बना लेना। यह सुनने में एक छोटा सा बदलाव लगता है, लेकिन इसके प्रभाव गहरे और चमत्कारी होते हैं।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन नामक हार्मोन के स्राव को बाधित करती है, जो नींद को नियंत्रित करता है। इससे नींद की गुणवत्ता में गिरावट आती है और अनिद्रा की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
सोशल मीडिया, गेमिंग, या ऑफिस के ईमेल पढ़ने से मस्तिष्क में डोपामिन रिलीज होता है, जिससे हम सतर्क महसूस करते हैं। यह प्रक्रिया सोने से पहले मस्तिष्क को शांति में आने नहीं देती।
डब्ल्यूएचओ और निमहंस जैसे संस्थाओं के अध्ययन बताते हैं कि नींद की कमी से तनाव, अवसाद और चिंता जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं और डिजिटल सनसेट इस चक्र को तोड़ सकता है।
डिजिटल सनसेट अपनाने से नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। जब हम सोने से पहले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाते हैं, तो हमारा मस्तिष्क स्वाभाविक रूप से शांत होने लगता है। इस समय का उपयोग आप किताब पढ़ने, ध्यान करने, हल्के व्यायाम या परिवार से बातचीत में कर सकते हैं। यह न केवल आपके नींद के अनुभव को बेहतर बनाता है, बल्कि मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक संतुलन भी बढ़ाता है।
बच्चों और किशोरों के लिए भी यह आदत बेहद जरूरी है, क्योंकि उनका मस्तिष्क अभी विकास की अवस्था में होता है। यदि बचपन से ही उन्हें डिजिटल उपकरणों के सीमित उपयोग की आदत डाली जाए, तो उनकी एकाग्रता और रचनात्मकता कई गुना बढ़ सकती है।
डिजिटल सनसेट को आप त्याग न समझें, बल्कि एक समझदारी भरी आदत मानें। ऐसी आदत जो आज के समय में हर व्यक्ति को अपनानी चाहिए। सोने से पहले स्क्रीन से दूर रहना एक छोटा सा निर्णय है, लेकिन यह आपकी नींद, आपकी सोच और आपके पूरे जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बना सकता है।
तो क्यों न आज से ही तय किया जाए कि रात को सोने से पहले कुछ घंटों के लिए स्क्रीन को “शुभरात्रि” कह दिया जाए—ताकि हम खुद को एक शांत, सुकूनभरी और स्वस्थ नींद का उपहार दे सकें।