क्या 'के-वीजा' भारतीयों के लिए एच-1बी वीजा का विकल्प बन सकता है?

सारांश
Key Takeaways
- चीन का 'के-वीजा' एच-1बी वीजा का विकल्प हो सकता है।
- के-वीजा के लिए ऑफर लेटर की आवश्यकता नहीं।
- चीन में एसटीईएम छात्रों के लिए अवसर।
- भारतीयों पर एच-1बी वीजा फीस का असर।
- चीन में बेरोजगारी दर 19%।
नई दिल्ली, 5 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। अमेरिकी सरकार ने एच-1बी वीजा में कई महत्वपूर्ण बदलावों की घोषणा की है। इसके बाद से चीन का 'के-वीजा' काफी चर्चा में आ गया है। अमेरिका द्वारा एच-1बी वीजा के नियमों में बदलाव के बाद, कई देशों ने युवा प्रतिभाओं के स्वागत के लिए अपने दरवाजे खोले हैं। इन देशों में चीन सबसे आगे है।
चीन ने युवा प्रतिभाओं को अवसर प्रदान करने के लिए 'के-वीजा' की शुरुआत की है। एच-1बी वीजा की फीस बढ़ने के बाद, चीन का यह वीजा सुर्खियों में आ गया है। चीन 'के-वीजा' में और भी रियायतें प्रदान कर रहा है ताकि यह युवाओं को आकर्षित कर सके। इसलिए, के-वीजा के नियम और लाभों के बारे में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है।
चीन ने के-वीजा को 7 अगस्त को लांच करने की घोषणा की, और इसे 1 अक्टूबर को लागू किया गया। हर देश में वीजा की अपनी विशेष श्रेणियाँ होती हैं, जैसे कि शिक्षा, यात्रा, नौकरी आदि। चीन का 'के-वीजा' उन छात्रों के लिए है जो एसटीईएम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) की पढ़ाई कर रहे हैं या इस क्षेत्र में कार्यरत हैं।
अमेरिका के एच-1बी वीजा का उपयोग करने वाले अधिकतर लोग भारतीय हैं। इसलिए, जब इस वीजा की फीस बढ़ाई गई, तो इसका सीधा असर भारतीयों पर पड़ेगा। इसके विपरीत, के-वीजा के लिए आपको पहले से चीनी कंपनी का ऑफर लेटर होने की आवश्यकता नहीं है।
1 अक्टूबर को के-वीजा की शुरुआत के बाद सोशल मीडिया पर विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आई हैं। चीनी युवाओं में के-वीजा को लेकर असंतोष देखा जा रहा है। उनका कहना है कि उनके देश में युवा मास्टर डिग्री लेकर बैठे हैं, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है। उल्लेखनीय है कि चीन में बेरोजगारी दर लगभग 19 प्रतिशत है।
चीन और भारत के बीच लंबे समय से तनाव था, जो अब कम होते दिखाई दे रहा है। दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की शुरुआत भी हो रही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत के लोगों के लिए चीन का के-वीजा अमेरिका के एच-1बी वीजा का विकल्प बन सकता है? भारत और चीन के बीच भाषा और संस्कृति का बड़ा अंतर है। यह भी देखना होगा कि दूसरे देशों से आए लोगों को चीनी नागरिकों द्वारा स्वीकार करना और उनके साथ सामंजस्य स्थापित करना कितना आसान होगा।