क्या कम उम्र में मुस्लिम लड़कियों की शादी देश को शरिया के अनुसार चलाने जैसा है?: प्रियांक कानूनगो

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क्या कम उम्र में मुस्लिम लड़कियों की शादी देश को शरिया के अनुसार चलाने जैसा है?: प्रियांक कानूनगो

सारांश

क्या मुस्लिम लड़कियों की कम उम्र में शादी एक गंभीर मुद्दा है? प्रियांक कानूनगो ने इस पर अपनी चिंता व्यक्त की है, जिससे बच्चों के अधिकारों के उल्लंघन का सवाल उठता है। जानिए इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है।

Key Takeaways

  • सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र पर एनसीपीसीआर की याचिका को अस्वीकार किया।
  • प्रियांक कानूनगो ने इसे संविधान का अपमान बताया।
  • भारत में न्यूनतम शादी की आयु 18 वर्ष निर्धारित है।
  • बाल विवाह अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम धर्मनिरपेक्ष कानून हैं।
  • कम उम्र की लड़कियों की शादी रोकने की आवश्यकता है।

नई दिल्ली, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र पर एनसीपीसीआर की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इस पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो ने प्रतिक्रिया व्यक्त की। उनका कहना है कि कम उम्र में मुस्लिम लड़कियों की शादी देश को शरिया के अनुसार चलाने जैसा है।

प्रियांक कानूनगो ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि भारत के एक उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी को केवल उसके धर्म के आधार पर वैध ठहराया था। भारत का बाल विवाह अधिनियम और पॉस्‍को अधिनियम धर्मनिरपेक्ष कानून हैं, जिनमें न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है। 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ कोई भी यौन गतिविधि पॉक्सो अधिनियम के तहत बलात्कार की श्रेणी में आती है।

उन्होंने कहा कि हमने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आग्रह किया कि यदि नाबालिग के साथ यौन संबंध पॉक्सो के तहत अपराध है, तो विवाह की आड़ में इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने हमारी बात को स्वीकार किया और तत्‍काल एक अंतरिम आदेश दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जो भी हाई कोर्ट के आदेश हैं, उनको आधार बनाकर कहीं किसी कोर्ट में आदेश नहीं दिए जा सकते।

कानूनगो ने कहा कि आज खासकर बच्चों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की एकतरफा सुनवाई की गई। इसमें यह कहा गया कि एनसीपीसीआर का लोकस नहीं बनता।

प्रियांक कानूनगो ने कहा कि 12, 13, 14, या 15 साल की लड़कियों को शादी की आड़ में यौन शोषण की अनुमति देना देश को शरिया के अनुसार चलाने जैसा है। यह संविधान का अपमान है और भारत में बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है।

दरअसल, 2022 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में 21 वर्षीय मुस्लिम युवक और 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की के प्रेम विवाह को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत वैध माना था। यह मामला तब अदालत में पहुंचा था जब विवाहित जोड़े ने अपनी सुरक्षा को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट ने जोड़े को सुरक्षा प्रदान करते हुए उनके विवाह को मान्यता दी थी। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर मंगलवार को सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया।

Point of View

बल्कि यह बच्चों के अधिकारों और उनके भविष्य से जुड़ा हुआ है। हमें सुनिश्चित करना होगा कि हमारे देश में सभी बच्चों को समान अधिकार और सुरक्षा मिलें, चाहे उनका धर्म कोई भी हो।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

क्या मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र को लेकर कोई कानूनी प्रावधान हैं?
हां, भारत में बाल विवाह अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम के अनुसार, लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या निर्णय लिया?
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीपीसीआर की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया और कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश को आधार बनाकर किसी भी कोर्ट में आदेश नहीं दिए जा सकते।
प्रियांक कानूनगो का इस पर क्या कहना है?
प्रियांक कानूनगो ने कहा कि कम उम्र में शादी को अनुमति देना देश को शरिया के अनुसार चलाने जैसा है, जो संविधान का अपमान है।