क्या मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने महागठबंधन के घोषणापत्र पर किया तंज? 'लूट का खाका, गरीब महिलाओं के साथ धोखा'
सारांश
Key Takeaways
- महागठबंधन का घोषणापत्र विवादित है।
- मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने इसे धोखाधड़ी करार दिया है।
- तेजस्वी यादव की राजनीति पर सवाल उठाए गए हैं।
- बिहार के इतिहास का संदर्भ दिया गया है।
- आगामी चुनावों में मतदान के लिए जागरूकता जरूरी है।
पटना, 28 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी के साथ ही राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। महागठबंधन के 'बिहार का तेजस्वी प्रण' घोषणापत्र पर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) ने कड़ा तंज किया।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने महागठबंधन के 'बिहार का तेजस्वी प्रण' घोषणापत्र को 'लूट का खाका' और 'गरीबों को बेवकूफ बनाने का खाका' बताते हुए कहा कि यह न तो रोजगार पैदा करेगा और न ही विकास लाएगा। यह केवल झूठे वादों और छल-कपट का संग्रह है, जिसका उद्देश्य बिहार की जनता को गुमराह करना है। मंच ने विशेष रूप से गरीब मुसलमानों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला बताते हुए तेजस्वी की मंशा पर सवाल उठाए हैं।
मंच ने कहा, "यह घोषणापत्र वक्फ संपत्तियों को लूटने और गरीब मुसलमानों के हक छीनने की साजिश है। तेजस्वी यादव का वक्फ विधेयक विरोध मुस्लिम समुदाय के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात है।" वक्फ संपत्तियां अनाथों, विधवाओं और गरीबों की अमानत हैं, जिनकी सुरक्षा सभी की जिम्मेदारी है।
मंच ने आरोप लगाया कि तेजस्वी मुसलमानों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उनके वास्तविक अधिकारों से वंचित रखते हैं।
मंच को हाल के दिनों में वक्फ संशोधन बिल पर महागठबंधन का आक्रामक रुख अस्वीकार्य लगा।
घोषणापत्र में हर परिवार को एक सरकारी नौकरी, महिलाओं को मासिक भत्ता, किसानों-मजदूरों के लिए नई नीतियों, शासन में पारदर्शिता और युवा नेतृत्व का दावा किया गया है। लेकिन मंच ने इन्हें 'मौसमी मिठास' करार दिया, जो चुनाव के बाद कड़वी सच्चाई में बदल जाएगी।
मंच ने कहा, "जब लालू-राबड़ी राज में भ्रष्टाचार चरम पर था, तब अल्पसंख्यकों, महिलाओं या युवाओं के लिए क्या किया गया? यह घोषणापत्र बिहार को फिर से अपराध और भ्रष्टाचार के दलदल में धकेलने का प्लान है।"
मंच ने 'जंगलराज' की याद दिलाते हुए बताया कि लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासन में बिहार हत्या, अपहरण, लूट और फिरौती का अड्डा बन गया था। अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलता था और पुलिस असहाय थी। वही परिवार अब पारदर्शिता का लेक्चर दे रहा है, यह विडंबना है। तेजस्वी की वापसी का मतलब बिहार को फिर भय और हिंसा में धकेलना है।