क्या वंदे मातरम पर विवाद की बजाय एकता और भाईचारे पर ध्यान नहीं देना चाहिए? : मौलाना शहाबुद्दीन रजवी
सारांश
Key Takeaways
- वंदे मातरम
- एकता
- लोकतंत्र में व्यक्तिगत स्वतंत्रता
- राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर हमें सामाजिक सम्मान
बरेली, 9 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस) - 'वंदे मातरम' के 150 साल पूरे होने के अवसर पर लोकसभा में सोमवार को एक विशेष चर्चा आयोजित की गई। इसी संदर्भ में मंगलवार को ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के प्रमुख मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत की और अपनी विचारधारा व्यक्त की।
उन्होंने देश की एकता, भाईचारे और आपसी सम्मान पर जोर देते हुए कहा कि वंदे मातरम पर विवाद उठाने के बजाय इन मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने कहा कि वर्तमान में लोकसभा में वंदे मातरम को लेकर जो विवाद उत्पन्न हो रहा है, वह पूरी तरह से अनावश्यक है। इस गीत को 150 वर्ष हो चुके हैं और इस अवसर पर भी नेता अपनी-अपनी राजनीतिक स्वार्थों में उलझे हुए हैं। उनके अनुसार, वंदे मातरम केवल एक गीत है, जिसे जो पसंद करता है, वह इसे स्वतंत्रता के साथ गा सकता है। किसी को भी इसे गाने से रोकने की आवश्यकता नहीं है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि जो लोग किसी कारणवश वंदे मातरम नहीं गाना चाहते, उन पर किसी भी प्रकार का दबाव डालना अनुचित है। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपनी मान्यता और विवेक के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। यह कहना कि 'तुम्हें हर हाल में यह गीत गाना ही है', यह बिल्कुल गलत है।
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का भी उल्लेख किया जिसमें मद्रास हाईकोर्ट के निर्णय के पश्चात स्पष्ट किया गया था कि किसी भी छात्र या नागरिक पर वंदे मातरम गाने का दबाव नहीं डाला जा सकता। अदालतें हमेशा व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करती हैं।
उनका मानना है कि लोगों को उनके विवेक पर छोड़ देना चाहिए। जो लोग इस गीत को पसंद करते हैं, उन्हें इसे गाने दिया जाए, लेकिन जो नहीं गाना चाहते, उन्हें मजबूर करना न संविधान के अनुसार सही है, न समाज के।