क्या राम मंदिर आंदोलन और दलित के घर भोजन से जुड़ा था सीएम योगी के गुरु अवेद्यनाथ का जीवन?

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क्या राम मंदिर आंदोलन और दलित के घर भोजन से जुड़ा था सीएम योगी के गुरु अवेद्यनाथ का जीवन?

सारांश

महंत अवेद्यनाथ का जीवन एक प्रेरणा है, जिसने समाज में समरसता और राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाया। उनके द्वारा दलितों के घर भोजन करना उस समय की सामाजिक बुराइयों को चुनौती देने वाला था। जानिए उनके अद्वितीय जीवन के बारे में।

Key Takeaways

  • महंत अवेद्यनाथ का जीवन सामाजिक समरसता का प्रतीक है।
  • उन्होंने राम मंदिर आंदोलन को महत्वपूर्ण दिशा दी।
  • दलितों के घर भोजन करके उन्होंने अस्पृश्यता को चुनौती दी।
  • उनका ब्रह्मलीन होना एक इच्छामृत्यु की तरह था।
  • गोरक्षपीठ की परंपरा को आगे बढ़ाने में योगी आदित्यनाथ का महत्वपूर्ण योगदान है।

गोरखपुर, 3 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। गोरक्षपीठ के पूर्व पीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ संत परंपरा के ऐसे प्रतीक थे, जिन्होंने सामाजिक समरसता और राम मंदिर आंदोलन को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। उनके द्वारा उस समय दलित के घर भोजन करना एक साहसी कदम था, जब समाज में अस्पृश्यता का गहरा प्रभाव था।

जानकारी के अनुसार, फरवरी 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में हुए सामूहिक धर्मांतरण ने महंत अवेद्यनाथ को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने उत्तर भारत में ऐसी स्थिति से बचने के लिए काशी के डोमराजा के घर संतों के साथ भोजन किया और सामाजिक समरसता का संदेश फैलाया। यही उनकी जीवन की प्रेरणा बनी। आज, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। मीनाक्षीपुरम की घटना उनके सक्रिय राजनीति में आने का कारण बनी।

हर सितंबर में उनकी पुण्यतिथि होती है, जिससे गोरक्षपीठ के लिए यह महीना विशेष बन जाता है। इसी महीने में उनके गुरु और योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि भी होती है। इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह का आयोजन होता है। इस वर्ष महंत दिग्विजयनाथ की 56वीं और महंत अवेद्यनाथ की 11वीं पुण्यतिथि है। श्रद्धांजलि समारोह के उद्घाटन एवं समापन पर मुख्यमंत्री एवं गोरक्ष पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे।

यह आयोजन भारतीय परंपरा के गुरु-शिष्य के रिश्ते की अनूठी मिसाल है। महंत अवेद्यनाथ का ब्रह्मलीन होना एक साधारण घटना नहीं थी, बल्कि यह एक संत की इच्छा मृत्यु की तरह था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस विषय पर चर्चा की थी कि उनके गुरुदेव की इच्छा अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि पर ही ब्रह्मलीन होने की थी, और यही हुआ।

गोरखनाथ मंदिर में हर साल सितंबर में महंत दिग्विजयनाथ की पुण्यतिथि सप्ताह समारोह का आयोजन होता आया है। 2014 में, इसी समारोह के समापन के बाद योगी आदित्यनाथ अपने गुरुदेव अवेद्यनाथ का हालचाल लेने मेदांता अस्पताल गए। वहां उन्हें बताया गया कि गुरुदेव की सेहत बिगड़ गई है। उन्होंने महामृत्युंजय का जाप प्रारंभ किया और आधे घंटे बाद जीवन के लक्षण लौट आए। योगी को समझ आ गया कि गुरुदेव की विदाई का समय आ गया है। उन्होंने धीरे से कहा, 'कल आपको गोरखपुर ले चलूंगा।' यह सुनकर उनके आंसू बह निकले। अगले दिन एयर एंबुलेंस से गोरखपुर लाने के बाद उन्होंने कहा, 'आप मंदिर में आ चुके हैं।' इसके कुछ ही समय बाद महंत अवेद्यनाथ का शरीर शांत हो गया।

गोरक्षपीठ के महंत अवेद्यनाथ का ब्रह्मलीन होना सामान्य नहीं था; यह इच्छामृत्यु जैसा अनुभव था। चिकित्सकों के अनुसार, उनका निधन 2001 में ही हो जाना चाहिए था, जब वे पैंक्रियाज के कैंसर से पीड़ित थे। फिर भी, वे 14 वर्ष तक जीवित रहे।

महंत अवेद्यनाथ राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के प्रमुख नेताओं में से एक थे, और वे राम जन्मभूमि न्यास समिति के आजीवन सदस्य रहे। उनका जन्म मई 1921 में गढ़वाल (उत्तराखंड) जिले के कांडी गांव में हुआ। अपने पिता के वे इकलौते पुत्र थे। बचपन में उनका नाम कृपाल सिंह विष्ट था। नाथ परंपरा में दीक्षित होकर वे अवेद्यनाथ बन गए। उन्होंने वाराणसी व हरिद्वार में संस्कृत का अध्ययन किया और गोरखपुर सदर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा।

Point of View

बल्कि राम मंदिर आंदोलन को भी गति दी। यह कहानी हमें यह बताती है कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन के माध्यम से बड़े बदलाव ला सकता है।
NationPress
03/09/2025

Frequently Asked Questions

महंत अवेद्यनाथ का जन्म कब हुआ?
महंत अवेद्यनाथ का जन्म मई 1921 में गढ़वाल (उत्तराखंड) जिले के कांडी गांव में हुआ।
महंत अवेद्यनाथ का महत्वपूर्ण योगदान क्या था?
महंत अवेद्यनाथ ने सामाजिक समरसता और राम मंदिर आंदोलन को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया।
महंत अवेद्यनाथ का निधन कब हुआ?
महंत अवेद्यनाथ का ब्रह्मलीन होना 12 सितंबर 2014 को हुआ।
महंत अवेद्यनाथ ने किस परंपरा को आगे बढ़ाया?
उन्होंने नाथ परंपरा को आगे बढ़ाया और गोरखपुर के गोरक्षपीठ के प्रमुख बने।
महंत अवेद्यनाथ ने दलितों के लिए क्या किया?
उन्होंने दलितों के घर भोजन किया और सामाजिक जड़ताओं को तोड़ने का प्रयास किया।