क्या 103 साल बाद भी महोबा के गांधी आश्रम में महिलाएं चरखा चला रही हैं?

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क्या 103 साल बाद भी महोबा के गांधी आश्रम में महिलाएं चरखा चला रही हैं?

सारांश

महोबा के गांधी आश्रम में महिलाएं आज भी चरखा चलाकर गांधी के सपनों को जीवित रख रही हैं। यह केंद्र 103 साल बाद भी खादी का उत्पादन कर, आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक बना हुआ है। जानें इस ऐतिहासिक केंद्र की कहानी और इसकी महत्वता।

Key Takeaways

  • गांधी आश्रम का महत्व आज भी बना हुआ है।
  • महिलाएं चरखा चलाकर आर्थिक स्वावलंबन में योगदान दे रही हैं।
  • खादी का उत्पादन एक सांस्कृतिक विरासत है।
  • ऐतिहासिक दृष्टि से यह केंद्र महत्वपूर्ण है।
  • गांधी के विचारों का प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है।

महोबा, 1 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के जैतपुर में स्थित श्री गांधी आश्रम उत्पत्ति केंद्र आज भी महात्मा गांधी के उस सपने को संजोए हुए है, जिसे उन्होंने 1920 में इस केंद्र की स्थापना के समय देखा था। यह केंद्र केवल खादी के उत्पादन का स्थल नहीं है, बल्कि कुटीर उद्योग के माध्यम से आर्थिक स्वावलंबन की गांधीवादी सोच का एक जीवंत उदाहरण है।

जैतपुर के इस ऐतिहासिक केंद्र की स्थापना के लिए स्वयं महात्मा गांधी, आचार्य जेबी कृपलानी के साथ यहां आए थे। उनका उद्देश्य था कि यहां की गरीब जनता को चरखे के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया जाए, ताकि वे अपने कपड़े स्वयं बना सकें और यह उनकी रोजी-रोटी का साधन भी बन सके।

केंद्र की स्थापना के बाद जैतपुर के लगभग 200 बुनकर परिवारों ने सूत कताई और कपड़ा बनाने का कार्य शुरू किया था। उस समय हर घर में चरखा आ गया था और सूत कातना एक धर्म जैसा बन गया था। देश की आजादी के दशकों बाद भी, यहां के बुनकर परिवार चरखा चलाकर खादी का कपड़ा तैयार कर रहे हैं। बुनकर अपने घर का काम खत्म कर चरखा चलाते हैं और सूत कातकर आमदनी करते हैं, जिससे उनका खर्च चलता है। वर्तमान में इस केंद्र में लगभग 15 से 20 चरखे चल रहे हैं।

केंद्र के व्यवस्थापक धनप्रसाद विश्कर्मा ने राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए कहा कि इन चरखों को मुख्य रूप से महिलाएं चलाती हैं, जो घर के काम से फुर्सत लेकर श्री गांधी आश्रम उत्पत्ति केंद्र में आती हैं और सूत कातकर पैसे कमाती हैं। पहले ऊन लाया जाता है, जिससे चरखे से धागा बनाया जाता है और फिर बुनकरों को दिया जाता है। बुनकर हथकरघा से कपड़ा तैयार करते हैं। अंत में, कपड़े की धुलाई करके उन्हें विक्रय के लिए दुकानों पर भेजा जाता है। इस प्रकार, यह केंद्र आज भी जैतपुर के कई परिवारों, विशेषकर महिलाओं के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है, जो गांधी के स्वदेशी और स्वावलंबन के विचार को साकार कर रहा है।

बुनकरों ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत करते हुए कहा कि हम चरखा चलाकर सूत काटते हैं, इससे जो पैसा मिलता है उससे हम अपने घर का खर्च चलाते हैं। 103 साल बाद भी, यहां चरखा से सूत काटा जाता है।

Point of View

महिलाएं अपने परिवारों की आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनकर गांधी के विचारों को जीवित रख रही हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि कैसे एक विचार, जब सही दिशा में लागू किया जाता है, तो वह समय के साथ भी प्रासंगिक बना रह सकता है।
NationPress
01/10/2025

Frequently Asked Questions

गांधी आश्रम कब स्थापित हुआ था?
गांधी आश्रम की स्थापना 1920 में हुई थी।
यहां कितने चरखे चल रहे हैं?
इस समय केंद्र में लगभग 15 से 20 चरखे चल रहे हैं।
महिलाएं चरखा चलाकर क्या करती हैं?
महिलाएं चरखा चलाकर सूत कातती हैं, जिससे उन्हें आय होती है।
यहां खादी का उत्पादन कैसे किया जाता है?
यहां ऊन लाकर चरखे से धागा बनाया जाता है, जिसे बुनकरों को दिया जाता है।
यह केंद्र किसके सपने को साकार कर रहा है?
यह केंद्र महात्मा गांधी के स्वदेशी और स्वावलंबन के विचार को साकार कर रहा है।