क्या ममता बनर्जी ने बंगाली भाषा की अस्मिता को ठेस पहुंचाया?

सारांश
Key Takeaways
- ममता बनर्जी का भाषाई आंदोलन राजनीतिक संदर्भ में उठाया गया सवाल है।
- दिलीप घोष की प्रतिक्रियाएं इस आंदोलन की गंभीरता को दर्शाती हैं।
- बंगाली लोगों की स्थिति में सुधार की आवश्यकता है।
- प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहा है।
कोलकाता, 22 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाली भाषा की अस्मिता को संरक्षित करने के लिए ‘भाषा आंदोलन’ की शुरुआत की बात कही है, जिसे लेकर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज हो गई हैं। भाजपा नेता दिलीप घोष ने इस संदर्भ में सवाल उठाते हुए कहा कि जिस ममता बनर्जी ने सत्ता में रहते हुए बंगाली भाषा की अस्मिता पर प्रहार किए, वही अब किस आधार पर भाषा आंदोलन की बात कर रही हैं?
दिलीप घोष ने यह भी आरोप लगाया कि वर्तमान में बंगाली लोगों की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि उन्हें जीविका के लिए दूसरे राज्यों में जाना पड़ रहा है, जहाँ उन्हें हेय दृष्टि से देखा जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस स्थिति के लिए ममता बनर्जी ही जिम्मेदार हैं, जिन्होंने हमेशा से बंगाली भाषा की गरिमा को ठेस पहुंचाया है। ममता को यह ड्रामेबाजी बंद कर देनी चाहिए क्योंकि अब यह उनके लिए काम नहीं आने वाली है।
इसके अलावा, दिलीप घोष ने ममता बनर्जी के उस दावे को भी निराधार बताया, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘मतदाता पुनरीक्षण’ के कारण पश्चिम बंगाल के लोगों को ‘बांग्लादेशी’ का टैग दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी वास्तविकता से दूर हैं और बांग्लादेशी लोगों को बचाने में लगी हैं, जो उन्हें वोट देते हैं और फिर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं। यदि ऐसे बांग्लादेशियों की पहचान की जा रही है, तो ममता बनर्जी क्यों आपत्ति जता रही हैं?
साथ ही, उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की समृद्धि का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया। उन्होंने कहा कि 2014 में भारत की अर्थव्यवस्था का स्थान दसवां था, लेकिन आज मोदी के नेतृत्व में यह तीसरे स्थान पर पहुँच गई है। हम भविष्य में इसी तरह विकास के नए प्रतिमान स्थापित करते रहेंगे।