क्या मंदिर की सीढ़ी पर बैठना एक प्राचीन परंपरा का महत्व है?

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क्या मंदिर की सीढ़ी पर बैठना एक प्राचीन परंपरा का महत्व है?

सारांश

मंदिर की सीढ़ी पर बैठने का अर्थ केवल आराम नहीं है, बल्कि यह एक प्राचीन परंपरा का प्रतीक है। जानें इस परंपरा के पीछे का गहरा उद्देश्य और इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव है।

Key Takeaways

  • मंदिर की सीढ़ी पर बैठना ध्यान का स्थान है।
  • शांति और ध्यान के लिए एक विशेष श्लोक का पाठ करें।
  • आंखें खुली रखते हुए भगवान के स्वरूप का आनंद लें।
  • सांसारिक वस्तुओं के लिए याचना न करें।
  • ध्यान और भक्ति का प्रतीक है सीढ़ी पर बैठना।

नई दिल्ली, 26 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। मंदिर की सीढ़ी पर बैठना केवल आराम करने का एक साधन नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक महत्वपूर्ण परंपरा और उद्देश्य है। वर्तमान में लोग मंदिर की सीढ़ी पर बैठकर अपने घर, व्यापार या राजनीति पर चर्चा करने लगते हैं, लेकिन प्राचीन काल में यह स्थान शांति और ध्यान का प्रतीक था।

मान्यता है कि जब हम किसी मंदिर में दर्शन करने के बाद बाहर आते हैं, तो हमें थोड़ी देर के लिए सीढ़ी पर बैठकर भगवान की ध्यान करना चाहिए।

इस दौरान एक विशेष श्लोक का पाठ करना चाहिए: 'अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम्। देहान्त तव सानिध्यम्, देहि में परमेश्वरम्।' इसका अर्थ है कि हमारी मृत्यु बिना किसी कठिनाई के हो, हम किसी बीमारी या परेशानियों से न गुजरें। साथ ही, हमारा जीवन ऐसा हो कि हमें किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़े। जब भी हमारी मृत्यु हो, हमारे प्राण भगवान के सामने जाएं और हम उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

इस श्लोक का संदेश यह है कि हमें सांसारिक चीजों के लिए याचना नहीं करनी चाहिए। घर, धन, नौकरी, और संतान जैसी चीजें भगवान की कृपा से मिलती हैं। प्रार्थना का अर्थ निवेदन और विशेष अनुरोध करना है, जबकि याचना सांसारिक इच्छाओं के लिए होती है।

दर्शन करते समय हमारी आँखें खुली रहनी चाहिए ताकि हम भगवान के स्वरूप, चरण, मुखारविंद और श्रृंगार का पूरा आनंद ले सकें। आँखें बंद करना उचित नहीं है, क्योंकि हम दर्शन के लिए आए हैं। लेकिन जब हम बाहर आएं, तो सीढ़ी पर बैठकर आँखें बंद करके भगवान का ध्यान करना चाहिए और ऊपर बताए गए श्लोक का पाठ करना चाहिए।

यदि ध्यान करते समय भगवान का स्वरूप ध्यान में नहीं आता, तो हमें फिर से मंदिर जाकर दर्शन करना चाहिए और फिर सीढ़ी पर बैठकर ध्यान एवं श्लोक का पाठ करना चाहिए। यह प्रथा हमारे शास्त्रों और बुजुर्गों की परंपरा में वर्णित है।

इसका उद्देश्य हमारे जीवन में स्वास्थ्य, लंबी उम्र और मानसिक शांति सुनिश्चित करना है। मंदिर में आँखें खुली और बाहर बैठकर आँखें बंद करके ध्यान करना हमारी श्रद्धा, ध्यान और भक्ति का प्रतीक है।

Point of View

यह मानना आवश्यक है कि धार्मिक परंपराएँ हमारे समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। मंदिर की सीढ़ी पर बैठने की परंपरा न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा देती है, बल्कि यह हमें अपने जीवन के मूल्यों को समझने में भी मदद करती है।
NationPress
26/10/2025

Frequently Asked Questions

मंदिर की सीढ़ी पर बैठना क्यों महत्वपूर्ण है?
यह एक प्राचीन परंपरा है जो ध्यान और शांति का प्रतीक है।
किस श्लोक का पाठ करना चाहिए?
अनायासेन मरणम्, बिना देन्येन जीवनम् का पाठ करना चाहिए।
सीढ़ी पर बैठकर ध्यान करने का उद्देश्य क्या है?
यह हमारे जीवन में स्वास्थ्य, लंबी उम्र और मानसिक शांति सुनिश्चित करना है।