क्या मणिकर्णिका घाट पर चिता के ठंडा होने के बाद 94 लिखा जाता है? जानिए रहस्य
सारांश
Key Takeaways
- मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख पर 94 लिखा जाता है।
- यह अंक आत्मा की मुक्ति का प्रतीक है।
- यह परंपरा भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
वाराणसी, 4 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बनारस का मणिकर्णिका घाट केवल एक घाट नहीं है, बल्कि आस्था, मोक्ष और रहस्य का अद्भुत संगम है। यह वह स्थान है जहाँ सदियों से निरंतर चिताएं जलती आ रही हैं। यहाँ मृत्यु को उत्सव के समान दृष्टिकोण से देखा जाता है। मणिकर्णिका घाट को काशी का महाश्मशान भी कहा जाता है। इस घाट से जुड़ी एक अद्वितीय परंपरा है, जिसे शायद ही अन्यत्र देखा गया हो, वह है चिता की राख पर 94 लिखने की।
जब मणिकर्णिका घाट पर किसी शव का दाह संस्कार पूरा हो जाता है और चिता ठंडी होने लगती है, तब संस्कार करने वाला व्यक्ति राख पर लकड़ी या अपनी उंगली से 94 लिखता है। इस प्रक्रिया को मृत आत्मा की मुक्ति के लिए किया जाता है। यहाँ 94 को मुक्ति मंत्र माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं इस अंक को स्वीकार करते हैं और आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाते हैं। लेकिन, आप सोच रहे होंगे कि 94 ही क्यों?
इसके पीछे एक मान्यता है। कहा जाता है कि हर मनुष्य के पास कुल 100 गुण माने जाते हैं। इनमें से 6 गुण ऐसे हैं जो जीवन, मरण, यश, अपयश, लाभ और हानि हैं और ये ब्रह्मा द्वारा पहले से निर्धारित होते हैं। शेष 94 गुण व्यक्ति के अपने होते हैं, जिन्हें वह अपने कर्मों, विचारों और आचरण के माध्यम से संभालता है। इसलिए मणिकर्णिका घाट पर 94 लिखने का अर्थ है अपने जीवन के सभी 94 कर्म भगवान शिव को समर्पित कर देना, ताकि आत्मा अपने कर्मों के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करे।
यह परंपरा कब प्रारंभ हुई, इसका सही समय कोई नहीं जानता, लेकिन यह पीढ़ियों से चली आ रही है। न तो किसी धार्मिक ग्रंथ में इसका उल्लेख है, न ही किसी विशेष शास्त्र में, फिर भी यह विश्वास बनारस की आत्मा का हिस्सा बन गया है। यह प्रथा केवल मणिकर्णिका घाट तक सीमित है और इसके रहस्य को वही लोग समझते हैं जो यहाँ पीढ़ियों से अंतिम संस्कार करते आ रहे हैं।
मणिकर्णिका घाट की एक और विशेषता यह है कि यहाँ हर शव का दाह संस्कार नहीं होता। यहाँ गर्भवती महिलाएं, 12 वर्ष से छोटे बच्चे, सर्पदंश से मरे लोग या संत-महात्मा का दाह संस्कार नहीं किया जाता है।