क्या 'फ्लाइंग सिख' मिल्खा सिंह ने शरणार्थी कैंप में रहकर भूख और गरीबी का सामना किया, और ओलंपिक में देश का गौरव बढ़ाया?
सारांश
Key Takeaways
- मिल्खा सिंह का संघर्ष और समर्पण युवाओं के लिए प्रेरणा है।
- वे गोल्ड मेडल विजेता रहे हैं और ओलंपिक में भाग लिया।
- उनका नाम 'फ्लाइंग सिख' रखा गया।
- उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया।
- उनकी कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत से हर लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
नई दिल्ली, 19 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का नाम भारत के सबसे कुशल धावकों में गिना जाता है। उन्होंने एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को गोल्ड मेडल दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और तीन ओलंपिक में देश का गौरव बढ़ाया। उनके अदम्य संघर्ष, अनुशासन और समर्पण ने देश के युवाओं को प्रेरित किया है।
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (जो वर्तमान में पाकिस्तान में है) के एक सिख परिवार में हुआ था। विभाजन के समय वे भारत आ गए और दिल्ली के शरणार्थी शिविर में रहने के दौरान उन्हें भूख, गरीबी और विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। कई रातें ऐसी थीं जब उन्हें भूखे पेट सोना पड़ा। इन कठिनाइयों ने उनके अंदर एक अद्वितीय जज्बा और जुनून पैदा किया, जिसने उन्हें भारत का एलीट धावक बनने में मदद की।
जब मिल्खा सिंह युवा हुए, तो उनका सपना सेना में भर्ती होना था, जिसे उन्होंने पूरा किया।
मिल्खा सिंह की तेज दौड़ने की क्षमता अद्वितीय थी। एक क्रॉस कंट्री रेस में उन्होंने लगभग 400 सैनिकों के बीच छठा स्थान प्राप्त किया, जिससे उनके साथियों को उनकी काबिलियत का अहसास हुआ।
1956 के मेलबर्न ओलंपिक में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर हीट में भाग लिया, लेकिन पदक नहीं जीत सके। इस दौरान चैंपियन चार्ल्स जेनकिंस से मिली प्रेरणा ने उनके मनोबल को और बढ़ाया।
भारत लौटकर, मिल्खा ने अपने प्रदर्शन को सुधारते हुए 1958 के एशियन गेम्स में गोल्ड जीता और 1959 में उन्हें 'पद्म श्री' पुरस्कार से नवाजा गया।
1960 में उन्हें पाकिस्तान की इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला। हालांकि, बंटवारे का दुख उनके मन में था और वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समझाने पर उन्होंने यह चुनौती स्वीकार की।
उस समय पाकिस्तान में अब्दुल खालिक एक प्रसिद्ध धावक थे। प्रतियोगिता में पाकिस्तानी फैंस खालिक का उत्साह बढ़ा रहे थे, लेकिन मिल्खा सिंह की गति ने उन्हें पीछे छोड़ दिया।
उन्होंने दौड़ जीतकर पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से 'फ्लाइंग सिख' का उपनाम प्राप्त किया।
1960 के ओलंपिक में मिल्खा सिंह को संभावित पदक विजेता माना जा रहा था। 400 मीटर दौड़ में 200 मीटर तक वह आगे थे, लेकिन एक छोटी सी चूक ने उन्हें चौथे स्थान पर पहुंचा दिया। उन्होंने 45.73 सेकंड का समय दर्ज किया, जो 40 वर्षों तक नेशनल रिकॉर्ड बना रहा।
1964 में मिल्खा सिंह ने अंतिम बार ओलंपिक में भाग लिया और 4x400 मीटर रिले में भारतीय टीम का नेतृत्व किया, लेकिन उस बार भी पदक नहीं जीत सके। इसके बाद उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय लिया।
साल 2013 में उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' रिलीज हुई। 18 जून 2021 को कोविड-19 के कारण उनके स्वास्थ्य में गिरावट आई और इस महान धावक का निधन हो गया।