क्या मुजफ्फरपुर सुसाइड केस में सीआईडी की टीम ने घटनास्थल का दौरा किया?
सारांश
Key Takeaways
- सीआईडी ने मुजफ्फरपुर में घटनास्थल का दौरा किया।
- आर्थिक तंगी ने आत्महत्या को जन्म दिया।
- अवैध माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू।
- सिर्फ चार कंपनियां ही पंजीकृत हैं, बाकी अवैध।
- घटना ने समाज में शोक और आक्रोश फैलाया है।
पटना, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के मुजफ्फरपुर में हुए सामूहिक आत्महत्या की घटना के बाद, जांच की जिम्मेदारी संभालने वाला आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) मंगलवार को घटनास्थल पर पहुंचा।
यह भयानक घटना 14 दिसंबर को मुजफ्फरपुर जिले के सकरा थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली रूपनपत्ती मथुरापुर पंचायत के मिश्राउलिया गांव में हुई, जहां एक ही परिवार के चार सदस्यों ने कथित तौर पर अपने घर में आत्महत्या कर ली।
डीआईजी जयंत कांत के नेतृत्व में एक विशेष सीआईडी टीम घटनास्थल पर पहुंची और विस्तृत फोरेंसिक और दस्तावेजी जांच की।
सीआईडी के DIG जयंत कांत ने इस घटना को बेहद दुखद और गंभीर बताया और कहा कि मृतक के मोबाइल फोन और घटनास्थल से मिले दस्तावेजों से महत्वपूर्ण सुराग बरामद हुए हैं।
जयंत कांत ने कहा कि सीआईडी अब इस तकनीकी और दस्तावेजी सबूत का विश्लेषण कर सामूहिक आत्महत्या के पीछे के असली कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रही है।
अमरनाथ राम ने कथित तौर पर 14 दिसंबर को अपनी तीन बेटियों और दो बेटों के साथ फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। हालांकि उनके दो छोटे बेटे इस सामूहिक आत्महत्या में बच गए।
एक ही परिवार के चार सदस्यों की मौत से व्यापक शोक और आक्रोश फैल गया।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और पूर्वी मुजफ्फरपुर के उपमंडल अधिकारी तुषार कुमार 14 दिसंबर को जांच के लिए सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंचे थे।
प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि आर्थिक तंगी और बढ़ते कर्ज के दबाव ने अमरनाथ राम को यह चरम कदम उठाने के लिए मजबूर किया होगा।
जांचकर्ता हर पहलू से यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि किन परिस्थितियों ने एक पिता को इतना दर्दनाक फैसला लेने पर विवश किया।
घटना के बाद, पुलिस प्रशासन ने अवैध रूप से संचालित ऋण संस्थानों के खिलाफ व्यापक कार्रवाई शुरू की है।
मुजफ्फरपुर पुलिस ने सकरा थाना क्षेत्र में संचालित कई माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के कार्यालयों पर छापेमारी की।
चौंकाने वाली बात यह है कि क्षेत्र में लगभग दो दर्जन माइक्रो फाइनेंस कंपनियां चल रही हैं, लेकिन उनमें से केवल चार ही पंजीकृत हैं।
शेष संस्थाएं कथित तौर पर बिना लाइसेंस के चल रही हैं और अत्यधिक ब्याज दरें वसूल कर गरीब परिवारों का शोषण कर रही हैं।